पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/७०

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में उन्हीं को मिलता है जिनका बाजार है और बाजार है पैसे का! पैसे से ही बाजार है। बच्चा कई दिन सूखे मुंँह सूखे स्तन चूंँसकर सिसकता रहा। अन्त में ठण्डा पड़ गया। मेरे प्यारे मित्र, तुमसे तो कुछ छिपा नहीं है वही मेरा एक बच्चा था। अब मैं किसे देखूँ। अच्छा दिखाओ तो तुम्हारा बच्चा कितना मोटा हो गया है। हरे राम! सॉप के बच्चे को तो देखो कैसा फूला है। तुमने इसे इतना क्यों चराया है? इतना खून यह क्या करेगा? इसे कितने दिन इस योनि मे रखने का इरादा है? यह अपनी कांचली कब बदलेगा?

मेरी कुशल पूछते हो? ठीक है, बाजवी है, बहुत दिन से मिली नहीं थी। अच्छा सुनो। भयानक युद्ध मे फँसा हुआ हूँ। इसी युद्ध मे मेरे स्त्री बच्चे ढह चुके हैं-एक भूखा रह कर और दूसरा रोगी रहकर। मैं भी रोगी हो गया हूँ। अब खाया नहीं जाता। चिन्ता से जठराग्नि को बुझा दिया है। सिर झनझनाता रहता है। नींद मर गई है। उसकी लाश को तुम्हारे बच्चे चुरा ले गये है। पर खैर मुझे सोने की फुर्सत भी नहीं है। होस भी नहीं है। युद्ध कर रहा हूँ---कंगाली से युद्ध कर रहा हूँ, दरिद्रता भीषण दॉत कटकटा कर असंख्य शस्त्र लिये झपट रही है। हॉ हॉ, अब तक परास्त किया है। यह युद्ध का मध्यभाग आ गया है। ठहरो, दो हाथ मे साफ है। अभी जीत कर आता हूँ।

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