पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/७२

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जायगा! उसकी रबड़ी, मिठाई, फल लाकर बच्चे को खिलाना। मोटा हो जायगा रगत चढ़ जायगी। और तुम्हारी स्त्री? हा! हा! हा! उस धन से खरीदा हुआ घाघरा उसके लिये परम कल्याण-कारक होगा। वही हज़ार रुपया उसमे से दान धर्म में लगा देना। बस, स्वर्ग मे तुम्हारे बाप तुम्हारे लिये द्वार खोले खडे रहेंगे।

मगर ठहरो। खुशी से उछल न पड़ना। यह लूट का माल देर से मिलेगा। अभी युद्ध भी विजय नहीं हुआ हैं। सम्भव है, इसी युद्ध मे मेरी जवानी मारी जाय। उसी के सिर तो इस युद्ध का सेहरा है। वही तो इस युद्ध की सेनापति है। उसके चारों ओर गोलियां बरस रही है। यदि वह मारी गई और तब विजय हुई तो उसके अनन्तर ताण्डव नृत्य करने मे भी कुछ समय लगेगा। ओढ़ने को रक्तभरी ताजी खाल चाहियेगी। और वह भी हाथी की। पर मैं वह किसी काले रंग के भारी सेठ की निकालूंगा, रुपया देकर मोल ले लूंँगा। मेरा सफेद केश, दन्तहीन मुख, उस पर सज जायगा। एक बार नाच कर उसे मैं ठोकर मारदूंगा। फिर जिसके भाग्य मे हो, वह उसे ले जाय।

मेरी यह विजय-वीरता की,कहानी जो सुनेगा उसे सॉप का

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