पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/७३

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जहर नहीं चढ़ेगा। मेरी शपथ देने से सांप का विष उतर जायगा। जो सांप मनुष्य का स्वॉग धरे छल से धन पर बैठे है और जो धन निकम्मा पड़ा जंग खा रहा है और उनके डर से जो लोग, बालक, स्त्रियाँ शरीर और लज्जा की रक्षा तक करने को तरसती है, पर उसमे से नहीं ले सकती, मेरे नाम की दुहाइ लेते ही, वे सब काले सॉप बन जावेंगे और क्षण भर मे भाग जावेगे। उस धन से भूखे अन्न लेगे, बच्चे दूध लेगे, रोगी औषध लेगे, प्यासे जल लेगे और दुखी सुख लेगे। इतने पर जो शेष बचेगा वह मेरी दिवंगत आत्मा का होगा। विद्वान लोग मेरी आत्मा की शान्ति के लिये प्रतिवर्ष भाद्रपद वदी चौथ को उस धन पर एक, दो, तीन, चार, दस, बीस, पचास, सौ, हजार, लाख, करोड, अरब, खरब असंख्य जूते लगावेगे! अहाहा! कब होंगा मेरा वह ताण्डव नृत्य। वह युद्ध का यौवन फूटा पड़ता है। हूं-हूं--वह मारा!! हूं! हूं!



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