सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/८४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।


आंखे निकालता है? क्या मुझे खायेगा? मेरा खून पीयेगा? वह तो तेरे सर्वनाश की चिन्ता मे सूख गया! उसमे क्या स्वाद है?

जा पापी! अब मैं मरा जाता हूं, मरे को खा जाना। हलक से उगलन निकाल कर खाने वाले श्वान! मुर्दार भोजी गीदड़! ज़रा ठहर जा।

जा, सुख के श्मशान पर मौज कर, प्रेम की लाश का रस पी। तृप्त हो जायगा। इस लोक और परलोक का सब कुछ तुझे मिल जायगा। चल भाग यहाँ से। दूर हो---दूर---दूर-दूर। हटाओ, हटाओ, दूर ले जाओ। दुनियाँ की आंखों से दूर ले जाओ। धरती आस्मान से दूर ले जाओ। जो इसे देखेगा, अन्धा हो जायगा। जो इसे छुएगा, कोढ़ी हो जायगा। जो इसके पास से होकर निकलेगा, सड जायगा। जिसे इसकी हवा लगेगी, कीड़ा बन जायगा। इसे गाड़ दो, धरती मे गांड़ दो, या मिट्टी का तेल डालकर दीवा-सलाई दिखा दो। नहीं तो नदी मे फेक दो। देखना, चीमटे से पकड़ना। दॉत तोड़ देना, ऑख फोड़ देना, पैर काट डालना, सावधान रहना। ओफ! ऑख ओझल हुआ। झगड़ा कटा। मगर भीतर है। अभी है? वही है। हे भगवान्! हे नाथ! इसे भुला दो, मुझे बुला लो। यहाँ यह नहीं छोड़ेगा। हाय! देखो किस तरह घूरता है। मैं मरा हाय! हाय! छूना मत---छूना मत!ओफ!!!

६८