पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/८५

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भय

है! यह खड़का कैसा! कौन? इसे भी खोदकर यहीं गाड़ दूंगा। ओह? कुछ नहीं। मैं यों ही डर गया---हवा से पत्ता खड़क गया था। अब यह क्या? कोई है? नहीं, कोई नहीं। यहाँ कौन आयगा? इस बीहड़ बन मे? इस भयंकर जंगल मे? इस सन्नाटे की रात मे। इस चिल्ले की सर्दी मे। लोहू जम गया है, होठ सीं गये हैं, जीभ तालू से सट गई है। कैसा अँधेर है। बापरे! यह क्या चमकता है? हो! किसने छुआ यह ठण्डा हाथ किसका है? भागूं? किधर? पगडंडी किधर है? अब वह कौन बोला?