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पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/९३

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देखा न अपमान। सुख देखा न दुःख -- धम देखा न अधर्म। जो सामने आया, सब किया। धन मिला भी। उसे भोगा भी, पर भोगा नहीं गया। जीवन के रस मे बुढ़ापे की किरकिरी मिल गई। इस पुराने चिराग का सब तेल चीकट बन गया। भोगने की होस भोगो को ढोते ढोते ही मर गई। रसोई बनाते बनाते ही भूख मर गई।

चौथे व्याह की जवान स्त्री है। उसे जब व्याहा था ब्याह के पहले देखा था। हर्ष के मारे लोहू नाच उठा था। देखते देखते पेट ही नहीं भरता था। पर आज उससे डरता हूॅ। उसकी वह कटोरी सी आंखे भूखे की तरह मेरी ओर घूरा करती है। जब तक वह घूरती हैं भूल कर भी नहीं हॅसती। होठ फडकते है पर मुस्कराते नहीं। मैंने उसका क्या बिगाड़ा है? मुझ पर इतनी विष-वर्षा क्यों? धन, घर, ऐश्वर्य सब कुछ मैंने उसे दिया। यह कहां मिलता? गरीब गांव की लड़की थी। ये महल, ये ठाठ, ये दासी-दास कही देखे थे? पर ये सब मानो तुच्छ हैं? और क्या चाहती है? मॅगल को देखते ही हॅसती है, घुल घुल कर उसी से बोलती है -- जैसे वह उसका सगा हो। घबराता हूॅ। इज्जत, आबरू, बड़प्पन सब कच्चे धागे मे बॅधे लटक रहे है, और वह कच्चा धागा उसी के