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पृष्ठ:अन्तस्तल.djvu/९४

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हाथ में है। एक ठोकर मे सब खत्म हो जायगा -- सिर्फ एक ठोकर मे। जब तक हू दोनो हाथों से पगड़ी पकडे बैठा हू। जमाना नाज़क है। पर मेरे पीछे क्या होगा? हे भगवान! यह सब किस मायाजाल मे फांसा? पर किसी का क्या अपराध है! सब फन्दे तो अपने ही हाथ से बनाये थे।

जिस सन्तान की लालसा पर चार चार बालिकाओं का कौमार्य भ्रष्ट किया, वह आज तक नहीं मिली। जिनके पास रहने को जगह नहीं, खाने को अन्न नहीं, उनके घर मे दर्जनों बालक होते है। मैंने सब कुछ संग्रह किया, सब कुछ है, पर इन्हे सुख से भोगने वाला कोई नहीं है। वर्षों तक रात रात भर जाग कर, झूठ सच बोल कर, न जाने कितनों का अधिकार छीन कर, कितनों को नीचे गिराकर, यह तिमंजला 'मरा हाथी' खड़ा किया है, जिसमे मेरे पीछे दिया जलाने वाला भी कोई नही है। हाय करम! लोग रोते है कि धन नहीं, धन कैसे मिले? मैं रोता हूँ, इस धन को, इस जवान, सुन्दरी स्त्री को, कहाँ रखूॅ? किसके सिर मारूॅ? कहां नष्ट करूॅ? कोई ठौर नहीं। हाय राम! जैसे बनता है मन को मारता हूॅ, क्रोध को दबाता हूॅ, सज्जनता का व्यवहार रखता हूं; पर फिर भी सब व्यर्थ होता है। कोई सुजनता से नहीं पेश आता। नौकर लोग आंख देखते चोरी करते हैं और फटकारने पर मुॅह भींच कर