पृष्ठ:अपलक.pdf/१०१

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मरा क्या काल कलन ? मेरा क्या दिवस-मान ? मेरा क्या वर्ष-गणन ? क्या मरे पल, मुहूर्त ! मेरा क्या काल-कलन ? १ सूने हैं तुम बिन तो मेरे सब दिवस-प्रहर, बाहर सब सूना है, सूना है मम अन्तर, लहराता है सम्मुख शून्यार्णव हहर-हहर-- जिस पर अस्तित्व-नाव मेरी करती नर्तन, मेरा क्या काल कलन? तुमने स्वप्नों में भी अब आना छोड़ा है, मैं कैसे पूछु, क्यों यों नाता तोड़ा है ? परीक्षार्थ ही क्या यो मुझसे मुंह मोड़ा है ? मैं कर ही जाऊँगा यह विछोह भार-वहन ! मेरा क्या काल कलन ? छियाली