पृष्ठ:अपलक.pdf/११७

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निराशा क्यों हिय मथित करे? निराशा क्यों हिय मथित कर? निराशा क्यों हिय मथित करे ? चारों ओर भयानक तम क्यों हमको व्यथित करे ? निराशा क्यों हिय मथित करे ? १ नयनवान ही के आगे तो आते हैं तम पुज; पर, जो है जन्मान्ध निपट, वह, तम से क्यों सिहरे ? निराशा क्यों हिय मथित करे ? २ माना, आज छा रहा चहुँ दिशि, यह तमराज्य अखण्ड; पर, क्या कभी न जीवन-पथ में ज्योतिष्कण बिखरे ? निराशा क्यों हिय मथित करे ? ३ इस दुर्दम तम अन्ध निबिड़ का कट जाएगा पाप; श्राएगी उषा, आएगी. पगधर हरे-हरे; निराशा क्यों हिय मथित करे? एक सौ तीन