पृष्ठ:अपलक.pdf/३९

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अपलक ५ नेह भरे वे लोचन जिनने शत-शत दान दिये, कहाँ गए थे, जिनसे मैंने मधुकरण अमित पिये? सुनयने, मेरी प्राण-प्रिये ! ६ गजगामिनि मम मानिनि, निरखो लागी आग हिये क्षार हो रहा सदन तुम्हारा, यह विपदा लखिये, सुनयने मेरी प्राण-प्रिये ! रेलपथ-दिल्ली से कानपुर दिमा १३ मार्च १९४६ तेईस