पृष्ठ:अपलक.pdf/४६

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भिखारी प्रिय मेरा हिय सतत भिखारी, भर दो इसकी नयन झोलियों, हे मेरे मन-गगन विहारी, प्रिय मेरा हिय सतत भिखारी। ? निःश्वासों के कन्धों पर यह डाले निज लोचन की झोली, एक-एक धड़कन के मिस नित अलख जगाता बारी-बारी, प्रिय मेरा हिय सतत भिखारी। २ धड़क-धड़क निधड़क यह भटका दर-दर दरस-दान पाने को, पर न अभी तक भर पाई हैं इसकी ये झोलियाँ बिचारी, प्रिय, मेरा हिय सतत भिखारी। ३ अपनी अलख-फलक झॉकी से, तुम मिल-मिल कर दो अन्तर तर, इन रीते भिक्षापात्रों को भर-भर दो हे रस संचारी, प्रिय मेरा हिय सतत मिखारी। 7 तीस