पृष्ठ:अपलक.pdf/६४

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मेरी यह सतत टेर मेरी आकुल पुकार, मेरी यह सतत टेर, यह मेरी क्वासि-हूक, विफल हुई बेर-बेर । ? पूछा : तुम कहाँ छिपे ? प्रश्न रहा अनुत्तरित, अम्बर से टकरा कर अनुध्वनि आ गई त्वरित अहनिशि ही धड़क रहा मेरा हिय प्रश्न-भरित; कुछ तो बोलो मेरे मौनी अब हुई देर, यह मेरी क्वासि-हक विफल हुई बेर-बेर । २ इतना घन अन्तरपट डाले तुम चल देना- यह किसने कहा तुम्हें कि तुम अब न सुध लेना ? इतनी निष्ठुर कब थीं तुम, ओ मेरी मैना ? दृग-ओझल होते ही यह कैसा हेर-फेर ? बोलो, हो रही विफल क्यों मेरी सतत टेर ? ३ कहाँ मिलेगा वह मुख जिसकी स्मृति में मम मन- उलझा, उद्भ्रान्त, अथिर रहता उन्मन क्षण-क्षण ? अड़तालीस