पृष्ठ:अपलक.pdf/७

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घ और, विचार-जगत् मै यह हम देख ही चुके हैं कि भौतिक विज्ञान ( Physics ) विषयक इतिनश्चित्यमय यान्त्रिक सिद्धान्त ( Mechanistic Principle ) अाज हवा में उड़ गया। श्राज का भौतिक विज्ञान अनैश्चित्य- वाद ( Theory of Indeterminacy) का सिद्धान्त मान चुका है। जो भौतिक इति-नैश्चित्यवाद' उन्नीसवी शती के विज्ञान का एक प्रकार से स्वयंसिद्ध अंग था वह अाज मिथ्या हो गया है। मैंने ये बाते इसलिए कही है कि एकाङ्गी सिद्धान्तो को पकड़ बैटने का जो हमारा आग्रह है वह कुछ कम हो। अाज के हमारे अालोचक बन्धुओं में कुछ ऐसे हैं जो साहित्य और कला की कृतियो को एक विशेष प्रकार के मान-दण्ड से नापने लगे है । मैं उनके अध्यवसाय, परिश्रम, अध्ययन और विशिष्ट सिद्धान्त-प्रेम का श्रादर करता हूँ। पर, मैं यह निवेदन अवश्य करना चाहता हूँ कि वे अपने मस्तिष्क को अचलायतन न बना लें, विचारों को मुक्त वातावरण पलने है और अपने को निगड-बद्ध न कर ले । यह बात हमै समझ लेनी है कि मानव मानव है-वह केवल सामन्तवाट, पूँजीवाद, वर्गवाद, भौतिकवाद आदि का मुरब्बा-मात्र नहीं है। जिस वैज्ञानिक भौतिकवाद को वे बन्धु ध्रुव सत्य माने बैठे है उसकी ऐतिहासिक रूपरेखा को संवारने वाला उन्नीसवी शती का वह भौतिक विज्ञान है जिसका म्वरूप श्राज नितान्त रूप से परिवर्तित हो गया है। जब स्वयं भौतिक विज्ञान में अनैश्चि- त्यवाद समाविष्ट हो गया है तब समाज शास्त्र, राजनीति शास्त्र, अर्थनीति शास्त्र, साहित्यालोचन शास्त्र एवं कला-निर्णय शास्त्र में जड़तापूर्ण इति-मैश्चित्यबाद का पल्ला पकड़कर चलना साहस का काम भले ही हो, बुद्धि-संगत नहीं हो सकता। तर्क किया जाता है कि यतः रामायण सामन्तकालीन सामाजिक स्थिति- संभूता है अतः सामन्त राम को साक्षात् परमेश्वर बनाने, मनाने और मानने का उसमें अाग्रह है। राना में ईश्वरत्व स्थापित करके जन-समूह को विद्रोह करने से रोकना ही तत्कालीन समाज-स्तम्भ-धारियों का काम था। इसी में उनका, उनके वर्ग का, हित था। इस प्रकार रामायण तत्कालीन शोषक वर्ग के हित को सुरक्षित रखने की प्रेरणा से निर्मित हुई। कहिये, कैसी कही ? उदाहरण चाहते हो तो 'शूद्र, गँवार, ढोल, पशु, नारी' वाली पंक्तियाँ विद्यमान हैं ! देख लीजिये, तुलसी बाबा ने किस चतुरता से अपने वर्ग का हित-साधन किया है !! निवेदन है कि क्या वास्तव में इस प्रकार का प्रलाप साहित्यालोचन है ? घुटमा मारने पर श्रॉख फूट सकती है-इस तरह कि घुटने पर चोट लगने से आदमी भर-भराकर आँधे मुँह गिरे और भूमि के काँटे उसकी श्रॉखो मैं चुभ जायं ! पर, इससे 'मारूँ घुटना फूटे आँख' बाली लोकोक्ति तर्क-बुद्धि-युक्ति-संगत सिद्ध नहीं होगी।