पृष्ठ:अपलक.pdf/७२

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थकित थक कर बैठे हम कौन यहाँ ? ? हग धारा से पथ पङ्किल कर, कब से निकले हम मजिल पर ? अब बीत रही है क्या दिल पर ? जो शिथिल्ल चरण, नैराश्य भरे, हम हुए अचानक मौन यहाँ थक कर बैठे हम कौन यहाँ ? २ कब पहना मुसाफ़िरी बाना ? हमने न अभी तक यह जाना, अपने को एक पथिक माना, मग चलने की धुन रही, और सब अन्य लालसा गौण यहाँ, थक कर बैठे हम कौन यहाँ ? ३ हम लगन-बटोही, टोह लीन, हम पथिक पुरातन, चिर नवीन, क्यों आज बनें हम थकित दीन ? छप्पन