अप्सरा छोटे-छोटे कामदार मखमली तकिए, वैसा ही पीठ की तरफ बढ़ा गिर्दा । कुँवर साहब के दाहनी तरफ उनके खानदान के लोग थे और बाई तरफ राज्य के अफसर । पीछे आनेवाले सभ्य दर्शक तथा राज्य के पढ़े- लिखे तथा रईस लोग । राजकुमार यहीं बैठा था। ___कनक उठ गई। राजकुमार ने देखा । भीतर ग्रीन-रूम में उसने कुँवर साहब के नाम एक चिट्ठी लिखी और अपने जमादार को खूब समझाकर चिट्टी दे दी। इस काम में उसे पाँच मिनट से अधिक समय नहीं लगा । वह फिर अपनी जगह आकर बैठ गई। ___ जमादार ने चिट्ठी कुँवर साहब के अर्दली को दी। अर्दली से पह मो दिया कि जरूरी चिट्ठी है और छोटी बाईजो ने जल्द पेश करने के लिये कहा है। कुँवर साहब के रंग-ढंग वहाँ के तमाम नौकरों को मालूम हो गए थे। छोटी बाईजी के प्रति कुँवर साहब की कैसी कृपा-दृष्टि है, और परिणाम आगे चलकर क्या होगा, इसकी चर्चा नौकरों में छिड़ गई थी। अतः उसने तत्काल चिट्ठी पेशकार को दे दी, और साथ ही जल्द पेश कर देने की सलाह भी दी । पहले पेशकार साहब मौके के बहाने पत्र लेकर बैठे ही रहना चाहते थे, पर जब उसने बुलाकर एकांत में समझा दिया कि छोटी बाईजी इस राज्य के नौकरों के लिये कोई मामूली बाईजी नहीं और जल्द पत्र न गया, तो कल ही उससे ताल्लुक रखनेवालों पर बड़ी-बड़ी विपत्तियाँ आ सकती हैं, और इशारे से मतलब समझा दिया । तब पेशकार मन-ही-मन पुरस्कार की कल्पना करते हुए कुँवर साहब की गट्टी की तरफ बढ़े और मुककर पत्र पेश कर दिया। प्रकाश आवश्यकता से अधिक था। कुँवर साहब पढ़ने लगे। पढ़कर विना तपस्या के वर-प्राप्ति का सुंदर सुयोग देख, खुले हुए कमल पर बैठे मौरे की तरह प्रसन्न हो गए । पत्र में कनक ने शीघ्र ही कुँवर साहब को ग्रीन-रूम में बुलाया था। पर एकाएक वहाँ से उठकर कवर साहब नहीं पा सकते थे। गान
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