पृष्ठ:अप्सरा.djvu/१०९

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१०० अप्सरा ___ कुँवर साहब ने बड़े आदर से उठकर स्वागत किया। बैठिए, कहकर कनक उनके बैठने की प्रतीक्षा किए विना कुर्सी पर बैठ गई । कुँवर साहब नौकर को बाहर जाने के लिये इशारा कर बैठ गए। ____कनक ने कुँवर साहब पर एक तेज दृष्टि डाली । देखा, उनके अपार ऐश्वर्य पर तृष्णा की विजय थी। उनकी आँखें उसकी दृष्टि से नही मिल सकी । वे कुछ चाहती हैं, इसलिये झुकी हुई हैं, उन पर कनक का अधिकार जम गया। ____देखिए।" कनक ने कहा- यहाँ एक आदमी बैठा है, उसको कैद कर लीजिए।" आशा-मात्र से प्रबल-पराक्रम कुँवर साहब उठकर खड़े हो गए- 'आइए।" कनक आगे-आगे चली। स्टेज के सामने के गेटों की दराज से राजकुमार को दिखाया, उसके शरीर, मुख, कपड़े, रंग आदि की पहचान कराती रही । कुँवर साहब ने अच्छी तरह देख लिया। कई बार दृष्टि में जोर दे-देकर देखा। दूसरी कतार की तवाय तज्जुब की निगाह से मनुष्य को तथा कनक को देख रही थीं, गाना हो रहा था। ____ कनक को उसकी इच्छा पूर्ति से उपकृत करने के निश्चय से कुँवर साहब को उसे 'तुम'-संबोधन करने का साहस तथा सुख मिला। कनक भी कुछ झुक गई । जब उन्होंने कहा, अच्छा, तुम प्रीन रूम में चलो, तब तक अपने आदमियों को बुला इन्हें दिखा दें। ____ कनक चली गई । कुँवर साहब ने दरवाजे के पास से बाहर देखा। कई आदमी आ गए। दो को साथ भीतर ले गए। उसी जगह से राजकुमार को परिचित करा दिया और खूब समझा दिया कि महफिल उठ जाने पर एकांत रास्ते में अलग बुलाकर वह जरूर गिरफ्तार कर लिया जाय, और दूसरों को खबर न हो, आपस के सब लोग उसे पहचान लें।