१०४ अप्सरा जलती आग में आहुति डालती हुई बोली-"आप बहुत ठीक कहते है, फिर आप-जैसा जहाँ परवाना हो, वहाँ तो शमा को अपनी तमाम खूबसूरती से जलते रहना चाहिए । नहीं, मैं सोचती हूँ, मेरी मा जब तक यहाँ है, मैं शीशे के अंदर हूँ, शमा से मिलने से पहले आप उसके शीशे को निकाल दीजिए।" __ "जैसा कहो, वैसा किया जाय।" उत्सुक प्रसन्नता से कुँवर साहब ने कहा। ___ऐसा कीजिए कि वह आज ही सुबह यहाँ से चलो जायँ, और और तवाय हैं, मैं भी हूँ. जल्सा फोका न होगा। आप मुझे इस वक्त, बॅगले ले चलना चाहते हैं ? ___ कृतज्ञ प्रार्थना से कँवर साहब ने कनक को देखा । कनक समझ गई। कहा, अच्छा ठहरिए, मैं मा से जरा मिल लू । ___कुँवर साहब खड़े रहे। माता को उइंगस की आड़ से बुलाकर थोड़े शब्दों में कुछ कहकर कनक चली गई। गाना खत्म होने का समय आ रहा था। कुँवर साहब एक पालकी पर कनक को चढ़ा, दूसरी के बंद पर्दे में खुद बैठकर बँगले चले गए। राजकुमार को नए कंठों के संगीत से कुछ देर तक आनंद मिलता रहा। पर पोछे से; कुँवर साहब के चले जाने के बाद, महफिल कुछ बेसुरी लगने लगी, जैसे सबके प्राणों से आनंद की तरंग बह गई हो, जैसे मनोरंजन की जगह तमाम महफिल कार्य-क्षेत्र हो रही हो। ___ गायिका कनक के संगीत का उस पर कुछ प्रभाव पड़ा था, पर विदुषी कुमारी कनक उसकी नबरों में गिर गई थी। अज्ञात भाव से इसके लिये उसके भीतर दर्द हो रहा था.। कुछ देर तक तो बैठा रहा, पर जब कनक भीतर चली गई, और थोड़ी ही देर में कुँवर साहब भी उठ गए, कनक बड़ी देर तक न आई, फिर जब आई, तब बाहर ही सेन्या को बुलाकर उठ गई, यह सब देखकर वह स्टेज, गाना,
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