पृष्ठ:अप्सरा.djvu/११३

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१०६ अप्सरा "अब आपको मकान में मालूम हो जायगा।" ___ ये चारो उसी गाँव के आत्माभिमानी, अशिक्षित वीर, आजकल की भाषा में गुंडे थे, प्राचीन रूढ़ियों के अनुसार चलनेवाले, किसी ने रूढ़ि के खिलाफ किसी तरफ कदम बढ़ाया, तो उसका सर काट लेनेवाले, गाँव की बहुओं और बेटियों की इज्जत तथा सम्मान की रक्षा के लिये अपना सर्वस्व स्वाहा कर देनेवाले, अँगरेजों और मुसलमानों पर विजातीय घृणा की आग भड़कानेवाले, मलखान और अदन के अनुयायी, महावीरजी के अनन्य भक्त, लुप्त-गौरव क्षत्रिय जमींदार-घराने के सुबह के नक्षत्र, अपने स्वल्प प्रकाश मे टिमटिमा रहे थे, अधिक जलने के लिये उमड़ते हुए धीरे-धीरे बुम रहे थे। रिश्ते में ये ताय के भाई लगते थे। राजकुमार के चले जाने पर ताय को इनकी याद आई, तो जाकर नन शब्दों में कहा कि भैया, आप लाग चंदन के साथ जाओ, और राजकुमार को देखे रहना, कही टंटा न हो जाय । ये लोग चंदन के साथ चले गए थे। चंदन ने जैसा बताया, वैसा ही करते रहे। खानादान की लड़की तारा अच्छे घराने मे गई है, वहाँवाले सब ऊँचे दर्जे के पढ़े-लिखे आदमी हैं, इसका इन लोगों को गर्व था। धीरे-धीरे गाँव नजदीक आ गया। राजकुमार ने तारा का मतलब दूर तक समझकर फिर ज्यादा बातचीत इस प्रसंग में उनसे नही की । चंदन के लिये दिल में तरह-तरह की जिज्ञासा उठ रही थी- वह क्यों नहीं आया, तारा ने सब बातें उससे जरूर कह दी होगी, वह कहीं उसी चकर में तो नहीं घूम रहा, पर ये लोग क्यों नहीं बतलाते! राजकुमार इसी अधैर्य में जल्द-जल्द बढ़ रहा था । मकान आ गया । गाँव के आदमियों ने दरवाजे पर "विट्टो-बिट्टो" की असं- कुचित, निर्भय आवाज उठाई। ताय ने दरवाजा खोल दिया। राज- कुमार को खड़ा हुआ देख स्नेह-स्वर से कहा-'तुम आ गए ?" "सुनो एक ने गंभीर कंठ से ताप को एक तरफ. अलग बुलाया।