पृष्ठ:अप्सरा.djvu/११४

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अप्सरा १०७ तारा निस्संकोच बढ़ गई। उसने धीरे-धीरे कुछ कहा । वात समाप्त कर चारो ने तारा के पैर छुए। चारो एक तरफ चले गए। चिंता-युक्त तारा राजकुमार को साथ लेकर भीतर चली गई, और दरवाजा बंद कर लिया। ____ तारा के कमरे में जाते हो राजकुमार ने पूछा-'बहूजी, चंदन कहाँ है ? इतनी जल्द आ गया ." ___ "पुलिस के पास कोई मजबूत कागजात उनके बागीपन के सुबूत में नहीं थे, सिर्फ संदेह पर गिरफ्तार किए गए थे, पुलिस के साथ खास तौर से पैरवी करने पर जमानत पर छोड़ दिए गए हैं। इस पैरवी के लिये बड़े भाई से नाराज हैं। मुझे कलकत्ते ले जाने के लिये आए थे। यहाँ तुम्हारा हाल मुझसे सुना, तो बड़े खुश हुए, और तुमसे मिलने गए । पर रज्जू बाबू !" युवती की आँखें भर आई। राजकुमार चौंक उठा । उसे विपत्ति की शंका हुई। चकित देखता हुआ, युवती के दोनो हाथ पकड़कर आग्रह और उत्सुकता से पूछा-"पर क्या, बतलाओ, मुझे बड़ी शंका हो रही है।" "तुम्हारा भी तो वही खून है !" राजकुमार दृष्टि से इसका आशय पूछ रहा था। युवती ने अधिक बातचीत करना अनावश्यक समझा। एक बार राजकुमार उठकर बाहर चलने लगा था, पर युवती ने हाथ पकड़कर डॉट दिया-"श्रोड़ी देर में सब मालूम हो जायमा, घर के आदमियो के आने पर । खबरदार अगर बाहर कदम बढ़ाया।" वीर युवक तारा के पलंग पर सकिए में सर गड़ा पड़ा रहा । तारा उसके हाथ-मुँह धोने और जलपान करने का इंतजाम करने लगी। धैय के बाँध को तोड़कर कमी-कभी दृष्टि की अपार चिंता मालक पड़ती थी। कनक ने बँगले पहुँचकर जो दृश्य देखा, उससे उसकी रही-सही श्राशा निमूल हो गई। बँगले में कुबर साहब के मेहमान टिके हुए थे, जिनमें एक को कनक पहले से जानती थी । यह थे मिस्टर