पृष्ठ:अप्सरा.djvu/११६

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अप्सरा १०६ ___कुँवर साहब पालकी से उतरे। सब लोगों ने शैतान की सूरत का स्वागत किया। कनक खड़ी सबको देख रही थी। ____ "अजी, आप बड़ी मुश्किलों में मिली, और सौदा बड़ा महँगा" कुँवर साहब ने मित्रों को देख कनक की तरफ इशारा करके कहा। कनक कमल की कली की तरह संकुचित खड़ी रही। हृदय मे आग भड़क रही थी। कभी-कभी ऑखों से ज्वाला निकल पड़ती थी। याद आया. वह भी महाराजकुमारी है। पर उमड़कर आप ही हृदय बैठ गया-मुझमें और इनमें फितना फर्क : ये मालिक हैं, और मैं इनके इशारे पर नाचनेवाली ! और यह फर्क इतने ही के लिये । ये चरित्र में किसी भी तवायफ से अच्छे नहीं। पर समाज इनका है, इसलिये इनका अपराध नहीं । ऐसी नीचता से ओत-प्रोत वृत्तियों का लिए हुए भी ये समाज के प्रतिष्ठित, सम्मान्य, विद्वान् और बुद्धिमान मनुष्य हैं। और मैं ?" कनक को चक्कर आने लगा। एक खाली कुर्सी पकड़कर उसने अपने को सँभाला । इस वरह तप-तपकर बह और सुंदर हो रही थी, और चारो तरफ से उसके प्रति आक्रमण भी वैसे ही और चुमीले। कुँवर साहब मित्रों से खूब खुलकर मिले । हैमिल्टन की उन्होने बड़ी इज्जत की। कुँवर साहब जितनी ही हैमिल्टन की कद्र कर रहे थे, वह उतना ही कनक को अकड़-पकड़कर देख रहा था। . . . मुस्किराते हुए कुँवर साहब ने कनक से कहा-'बैठो इस बगल- वाली कुर्सी पर । अपने ही आदमियों की एक बैठक होगी, दो मंजिले पर; यहाँ भी हारमोनियम पर कुछ सुनाना होगा। सुरेश बाबू, दिलीप- सिंह भी गावेंगे। तुम्हें आराम के लिये फुर्सत मिल जाया करेगी।" कहकर चालाक पुतलियाँ फेर ली। एक नौकर ने आकर कुँवर साहब को खबर दी कि सर्वेश्वरी बाई यहाँ से स्टेशन के लिये खाना हो गई, उनका हिसाब कर दिया गया। कहकर मौकर चला गया। एक दूसरा नौकर आया । सलाम कर उस आदमी के गिरफ्तार