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पृष्ठ:अप्सरा.djvu/११७

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११० अप्सरा होने की खबर दी। कुँवर साहब ने कनक की तरफ देखा । कनक ने हैमिल्टन को देखकर राजकुमार को बुलवाना उचित नहीं समझा। दूसरे, जिस अभिप्राय से उसने राजकुमार को कैद कराया था, यहाँ उसका वह अभिप्राय सफल नहीं हो रहा था, कोई संभावना भी न थी। ___फनक को मौन देखकर कुवर साहब ने कहा-“ले आओ उसको।" ___ कनक चौंक पड़ी। जल्दी में कहा- नहीं नहीं, उसकी कोई जरूरत नहीं, उसे छोड़ दीजिए।" कनक का स्वर क्रॉप रहा था। ____"जरा देख तो लें, उस इशारेबाज को।" कुँवर साहब ने इशारा किया। चार सिपाही अपराधी को लेकर बँगले के भीतर आए । भीतर आते ही किसी की तरफ नजर उठाए विना अपराधी ने मुककर तीन बार सलाम किया। उसका शरीर और रंग-ढंग राजकुमार से मिलता-जुलता था । पर कनक ने देखा, वह राजकुमार नहीं था। इसका चेहरा रूखा, कपड़े मोटे, बाल छोटे-छोटे, बराबर । उम्र राजकुमार से कुछ कम जान पड़ती थी। ___ कुवर साहब ने कहा- क्योंजी, इशारेबाजी तुमने कहाँ सीखी " अपराधी ने फिर मुककर तीन बार सलाम किया, और कनक को एक तेज निगाह से देख लिया । "यह वह नहीं है ।" कनक ने जल्दी में कहा । कुँवर साहब देखने लगे। पहचान नहीं सके। स्टेज पर ध्यान आदमी की तरफ से ज्यादा कनक की तरफ़ था । पहले के आदमी से इसमें कुछ फर्क देखते थे। ___ अपराधी ने किसी की तरफ देखे विना फिर सलाम किया, और जैसे दीवार से कह रहा हो-"हुजूर, ग्वालियर में पखावज सीखकर कुछ दिनों तक रामपुर, जयपुर, अलवर, इंदौर, उदयपुर, बीकानेर, टीकमगढ़, रीवाँ, दरभंगा, बर्दवान, इन सभी रियासतों में मैं गया और समी महाराजों को पखावज सुनाई है। हुजूर के यहाँ जल्सा सुनकर पाया था।" कहकर उसने फिर सलाम किया।