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पृष्ठ:अप्सरा.djvu/११८

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अप्सरा "अच्छा, तुम पखावजिए हो?" हैमिल्टन की तरफ मुड़कर अँगरेजी में-'अब बन गया मामला।" कनक आगंतुक और कुँवर साहब को देख रही थी। रह-रहकर एक अज्ञात भय से कलेजा काँप उठता था। ___ "एक पखावज ले आओ।" सिपाही से कुँवर साहब ने कहा। बॅगले की दूसरी मंजिल पर फर्श विद्या हुआ था, मित्रों को साथ लेकर चले । आगंतुक से कनक को ले पाने के लिये कहा । सिपाही पखावज लेने चला गया। और लोग बाहर फाटक पर थे। __कुँवर साहब और उनके मित्र चढ़ गए। पीछे से दो खिदमतगार भी चले गए। कमरा सूना देख युवक ने कनक के कंधे पर हाथ रखकर फिसफिसाते हुए कहा-"मैं राजकुमार का मित्र हूँ।" कनक की आँखों से प्रसन्नता का फव्वारा फूट पड़ा। देखने लगी। युवक ने कहा-“यही समय है । तीन मिनट में हम लोग ग्वाई पार कर जायेंगे। तब तक वे लोग हमारी प्रतीक्षा करेंगे। देर हुई, तो इन राक्षसों से मैं अकेले तुम्हें बचा न सकूगा।" ___ कनक आवेग से भरकर युवक से लिपट गई, और हृदय से रेलकर उतावली से कहा- चलो।" 'तैरना जानती हो ?" जल्ल-जल्द खाई की तरफ बढ़ते हुए। " शंका से देखती हुई। "पेशवाज भीग जायगी। अच्छा, हाँ.” युवक कमरभर पानी में खड़ा होकर "धीरे से उतर पड़ो, घबराओ मत । कनक उतर पड़ी। युवक ने अपनी चादर भिगोकर पानी में हवा भरकर गुब्बारे सा बना कनक को पकड़ा दिया । ऊपर से आवाज आई-"अमी ये लोग नहीं आए, जरा नीचे देखो तो युवक कनक की बाँह पकड़ कर, चुपचाप तैरकर खाई पार करने लगा।