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पृष्ठ:अप्सरा.djvu/११९

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११२ अप्सरा ___ लोग नीच आए, फाटक की तरफ दौड़े । युवक पार चला गया। ___उस पार घोर जंगल था । कनक को साथ ले पेड़ों के बीच अदृश्य हो गया। इस बँगले के चारो तरफ खाई थी। केवल फाटक से जाने की राह थी। फाटक के पास से बड़ी सड़क कुँवर साहब की कोठी तक चली गइ थी। ___ शोरगुल उठ रहा था। ये लोग इस पार से सुन रहे थे। ____ "हम लोग पकड़ लिए जाय, तो बड़ी बुरी हालत हो।" कनक ने धीरे से युवक से कहा। अब हजार आदमी भी हमें नहीं पकड़ सकते, यह छ: कोस का जंगल है। रात है। तब तक हम लोग घर पहुँच जायँगे।" कपड़े निचोड़ते हुए युवक ने कहा। ___ "क्या आपका घर भी यहाँ है?" चलते हुए स्नेह-सिक्त स्वर से कनक ने पूछा। "मेरा घर नहीं, मेरे भाई की ससुराल है, राजकुमार वहीं होंगे।" 'वे लोग जंगल चारो तरफ से घेर लें, तो ?" "ऐसा हो नहीं सकता, और जंगल की बरात में ही वह गाँव है, इस तरफ तीन मील । ___आपको मेरी बात कैसे मालूम हुई ?" ____ "भाभी ने मुझे राजकुमार की मदद के लिये भेजा था। उसे उन्होने तुम्हें ले आने के लिये भेजा था।" कनक के क्षुद्र हृदय में रस का सागर उमड़ रहा था। "आपकी भाभी को राजकुसार क्या कहते हैं ?" "बहूजी।" "आपकी भाभी मायके कब भाई?" "तीन-चार रोज हुए।" कनक अपनी एक स्मृति पर जोर देने लगी।