पृष्ठ:अप्सरा.djvu/१२०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अप्सरा "साथ राजकुमार थे?" "श्राप तब कहाँ थे ?' "लखनऊ। किसानों का संगठन कर रहा था, पर बचकर, क्योकि मुझे काम ज्यादा प्यारा था ।" 'फिर " "लखनऊ में सरकारी खजाने पर डाका पड़ा। शक पर मैं भी गिरफ्तार कर लिया गया। पर मेरी गैरहाजिरी ही साबित रही। पुलिस के पास कोई बड़ी शिकायत नहीं थी। सिर्फ नाम दर्ज था। .खुफियावाले मुझे भला आदमी जानते थे। कोई सुबूत न रहने से जमानत पर छाड़ दिया गया।" "आप कब गिरफ्तार किए गए ?" ":-सात रोज हुए होंगे। अखबायें में छपा था।" "राजकुमार को कब मालूम हुआ ?" "जिस रोज भाभी को ले आए। उसी रात को तुम्हारे यहाँ।" कनक एक बार प्रणय से पुलकित हो गई। "देखिए, कैसी चालाकी, मुझे नहीं बतलाया, मुमसे नाराज होकर आए थे।" हाँ, सुना है, तुमसे नाराज हो गए थे। भाभी से बतलाया भी नहीं था । पर एक दिन उनकी चोरी भाभी ने पकड़ ली, तुम्हारे यहाँ से जो कपड़ा पहनकर गए थे, उसमें सिंदूर लगा था।" ___ कनक शरमा गई । श्रच्छा, यह सब भी हो चुका है " हँसती हुई चल रही थी। __"हाँ, राजकुमार की मदद के लिये यहाँ आने पर मुझे मालूम हुआ कि कुँवर साहब ने उनको गिरफ्तार करने का हुक्म दिया है। यहाँ मेरी भाभी के पिता नौकर हैं। गिरफ्तार करनेवालों में उनके गॉव का भी एक आदमी था। उसने उन्हें खबर दी। तब मैंने उसे सम- माया कि अपने आदमियों को बहकाकर मुझे ही गिरातार होनेवाला