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अप्सरा


और आप, आप भी जल्दी कीजिए।" हँसती हुई तारा ने चंदन से कहा।

"अब बार-बार क्या नहाऊँ ? पिछली रात नहा तो चुका, और ऐसे-वैसे स्नान नहीं, स्त्री-रूपी नदी को छूकर पहला स्नान, सरोवर मे दूसरा, फिर डेढ़ घंटे तक श्रोस में तीसरा, और जो गीले कपड़ों में रहा, वह सब ब? खाते।" चंदन ने हँसते हुए कहा।

तारा हँसती रही। राजकुमार से एक बार और नहाने के लिये कहकर कनक के कमरे में चलो गई।

मकान के अंदर कुआँ था। महरी पानी भर रही थी। राजकुमार नहाने चला गया।

मुन्नो भोजन के लिये राजकुमार और चंदन को बुलाने आया था। कएँ पर राजकमार को नहाते देखकर बाहर चला गया।

अभी तक घर को लियों को कनक की खबर न थी। अकारण घृणा की शंका कर तारा ने किसी से कहा भी नहीं था। अधिक भय उसे रहस्य के खुल जाने का था। कनक को नहलाकर वह माता के पास जाकर एक थाली में भोजन परोसवा लाई। माता ने पूछा, यह किसका भोजन है?

एक मेहमान आए हैं, फिर आपसे मिला दूंगी, संक्षेप में समाप्त कर ताप थाली लेकर चली गई।

कनक बैठी हुई तारा की सेवा, स्नेह, सहृदयता पर विचार कर रही थी। बातचीत से कनक को मालूम हो गया था कि तारा पढ़ी-लिखो है और मामूली अँगरेजी भी अच्छी जानती है। उसके इतिहास के प्रसंग पर जिन अँगरेजों के नाम आए थे, ताय ने उनका बड़ा सुंदर उचारण किया था, और अपनी तरफ से भी एकाध अगरेजी के शब्द कहे थे। "ताय का जीवन कितना सुखमय है"कनक सोच रही थी और जितनी ही उसकी आलोचना कर रही थी,अपने तमाम स्त्री-स्वभाव से उसके उतने ही निकट होती जा रही थी,जैसे लोहे को चुंबक देख पढ़ा हो।