पृष्ठ:अप्सरा.djvu/१४६

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अप्सय १३९ चक्कर लगाते हुए बाते, देखकर चले जाते । कँवर साहव के आदमी भी कई बार आए, देर तक देखकर चले गए । जिस पखावजिए ने कनक को भगाया था, चंदन अपनी स्थिति द्वारा उससे बहुत दूर बहुत ऊँचे, संदेह से परे था। किसी को शक होने पर वह अपने शक पर ही शक करता। राजकुमार किताब कम पढ़ रहा था, अपने को ज्यादा । वह जितना ही कनक से भागता, चंदन और तारा उतना ही उसका पीछा करते । कनक अपनी जगह पर खड़ी रह जाती। उसकी दृष्टि में उसके लिये कोई प्रार्थना नहीं थी, कोई शाप भी नहीं था, जैसे वह केवल राजकुमार के इस अभिनय को खुले हृदय की आँखों से देखनेवाली हो। यह राजकुमार को और चोट करता था। स्वीकार करते हुए उसका जैसे तमाम बल ही नष्ट हो जाता था। राजकुमार की तमाम दुर्बलताओं को अपने उस समय के स्वभाव के तीखेपन और तेजी से आकर्षित कर चंदन लोगों को अपनी तरफ मोड़ लेता था । वह भी कुछ पढ़ नहीं रहा था, पर राजकुमार जितनी हद तक मनोराज्य में था, उतनी ही हद तक चंदन- बाहरी दुनिया में, अपनी तमाम वृत्तियों को सतर्क किए हुए, जैसे आकस्मिक धाक्रमण को तत्काल रोकने के लिये तैयार हो। पन्ने केवल दिखाव के लिये उलटता था, और इतनी जल्दबाजी थी कि लोग उसी की तरक आकृष्ट होते थे। चंदन का सोलहो आने बाहरी आडंबर था। राजकुमार का बाह्य-ज्ञान-राहित्य उस पर आक्रमण करने, पूछ-ताछ करने का मौका देता था। पर चंदन से लोगों में भय और संभ्रम पैदा हो जाता था। वे त्रस्त हो जाते थे, और खिंचते भी थे उसी की तरफ पहले। वहाँ जिसकी खोज में स्टेट के आदमी थे, चंदन-जैसे उस समय के आदमी से उसकी पूछ-ताछ बेअदबी तथा मूर्खता थी, और स्टेट की मी इससे बेइज्जती होती थी कहीं बात फैल गई ; शंका थी, कहीं यह कोई बड़ा आदमी हो; पाप था-हिम्मत थी नहीं, लोग आते और लौट जाते। चंदन समझता था। इसलिये यह और गंभीर होता रहा।