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पृष्ठ:अप्सरा.djvu/१४७

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अप्सरा ___ गाड़ी का वक्त आ गया । लोग प्लेटफार्म पर जमने लगे। चंदन की गाड़ी दूसरी लाइन पर लाकर लगा दी गई । सिगनल गिर गया। देखते-देखते गाड़ी भी आ गई। स्टेशन मास्टर ने गाड़ी कटवाकर चंदन के सामने ही वह डब्बा लगवा दिया, और फिर बड़े अदब से आकर चंदन को सूचना दी । एक दस रुपए का नोट निकालकर चंदन ने स्टेशन मास्टर को पुरस्कृत किया। स्टेशन मास्टर प्रसन्न हो गए। खड़े-खड़े पुलिस के दो सिपाही देख रहे थे। सामने आ सलामी दी। दो-दो रुपए चंदन ने उन्हें भी दिए । कुली लोग जल्दबाजी दिखला रहे थे। चंदन ने तारा को चढ़ने के लिये बाहर ही से आवाज दी, भाभी चलिए । सिपाहियों ने आदमियों को हटाकर रास्ता बना दिया । हटाते वक्त. दो-एक धक्के स्टेट के आदमियों को भी मिले। कुली लोग सामान उठा-उठाकर डब्बे में रखने लगे। चंदन ने खिड़कियाँ बंद करा दी। दरवाजा चपरासी ने खोल दिया। तारा कनक को साथ लेकर धीरे-धीरे डब्बे के भीतर चली गई। चंदन ने कुलियों ओर चपरासियों को भी पुरस्कार दिया। राजकुमार भी भीतर चला गया। चंदन के चढ़ते समय पुलिस के सिपाहियों ने फिर सलामो दी । चंदन ने दो-दो रुपए फिर दिए, और भीतर चढ़ गया। पुलिस के सिपाहियों ने अपनी मुस्तैदी दिखाकर चलते-चलते प्रसन्न कर जाने के विचार से "क्या देखते हो, हटो यहाँ से कह-कहाकर सामने के लोगों को दोचार धक्के और लगा दिए । प्रायः सब लोग स्टेट ही के खुफिया विभाग के थे। ___गाड़ी चल दी। कनक ने आप-ही-आप घूघट उठा दिया। विगत प्रसंग पर बातें होती रही। चारों ने खुलकर एक दूसरे की बातें की। जो कुछ भी राजकुमार को अविदित था, मालूम हो गया । कनक के अंदर अब किसी प्रकार का उत्साह नहीं रह गया था। वह जो कुछ कहती थी, सिर्फ कहना था, इसलिये । उसके स्वर में किसी प्रकार का अभियोग न था, कोई आकांक्षा न.थी । राजकुमार के पिछले भावों से उसके मर्म-स्थल पर चोट लग चुकी थी। जितनी ही बातें होती,