पृष्ठ:अप्सरा.djvu/१४९

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१४२ अप्सरा जैसे शरीर के शत छिद्रों से निकल जाता है । केवल उसका निष्क्रिय अहंज्ञान और निष्क्रिय शरीर रह जाता है, जैसे केवल प्रतिघात करते रहने के लिये, कुछ सृष्टि करने के लिये नहीं। इसके बाद हो उसका शरीर काँपने लगा। ऐसी दशा उसकी कभी नहीं हुई। उसने अपने को सँभालने की बड़ी चेष्टा की, पर संस्कारों के शरीर पर उसके नए प्रयत्न चल नहीं रहे थे, जैसे उसका श्रेय जो कुछ था, कनक ने ले लिया हो, जो उसी का हो गया था ; वह जिसे अपना समझता था, जिसके दान में उसे संकोच था, जैसे उसी के पास रह गया हो, और उसकी वश्यता से अलग। अपनी तमाम रचनाओं का ऐसी विYखल अवस्था देख वह हताश हो गया। आँखों में आंसू आ गए। चट विकृत हो गई। ___ तारा और चंदन सो रहे थे। कनक. राजकुमार को देख रही थी। अब तक वह मन से उससे पूर्णतया अलग थी । राजकुमार के साथ जिन-जिन भावनाओं के साथ वह लिपटी थी, उन सबको बैठी हुई अपनी तरफ खींच रही थी। कभी-कभी राजकुमार की मुख-वेध से उसके हृदय की करुणाश्रित सहानुभूति उसके स्त्रीत्व की पुष्टि करती हुई राजकुमार की तरफ़ उमड़ पड़ती थी। तब राजकुमार की क्षुब्ध चित्त-वृत्तियों पर एक प्रकार का सुख झलक जाया करता था, उसे कुछ सांत्वना मिलती थी। नवीन बल प्राप्त कर वह अपने समर के लिये फिर तैयार होता था। कनक रह-रहकर खुद चलकर अपनी निर्दोषिता जाहिर कर एक बार फिर, और अंतिम बार के लिये, प्रार्थना करने का निश्चय कर रही थी, लज्जा और मर्यादा का बॉध तोड़कर उसके स्त्रीत्व का प्रवाह एक बार फिर उसके पास पहुँचने के लिये व्याकुल हो उठा । पर दूसरे ही क्षण राजकुमार के बुरे बर्ताव याद आते ही वह संकुचित हो जाती थी। ___ जब कनक के भीतर सहृदय कल्पनाएँ उठती थीं, तब राजकुमार देखता था, कनक उसके भीतर, उसकी भावनाओं से रँगकर अत्यंत सुंदर हो गई है। हृदय में उसका उदय होते ही एक ज्योतिःप्रवाह