सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:अप्सरा.djvu/१५१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

अप्सरा स्टेशन मास्टर का चेहरा उतर गया । तब कांस्टेबुल ने हिम्मत की"आपके साथ वह कौन बैठी हुई है ?" 'मेरी स्त्री, भावज और भाई।" ___ स्टेशन मास्टर ने साहब को अँगरेपी में समझा दिया । साहब ने दो बार आँखें मुकाए हुए सर हिलाया, फिर अपनी सीट की तरफ चल दिए । और लोग भी पीछे-पीछे चले। दरवाजा बंद करते हुए सुनाकर राजकुमार ने कहा-0owards (डरपोक सब!) ___गाड़ी चल दी। (२२) राजकुमार के होठों का शब्द-बिंदु पीकर कनक सीपी की तरह आनंद के सागर पर तैरने लगी । भविष्य की मुक्ता की ज्योति उसकी वर्तमान दृष्टि में चमक उठी । अभी तक उसे राजकुमार से लजा नही थी, पर अब दीदी के सामने आप-ही-आप लाज के भार से पलकें मुकी पड़ती थीं। राजकुमार के हृदय का भार भी उसी क्षण से दूर हा गया । एक प्रकार की गरिमा से चेहरा वसंत के खुले हुए फूल पर पड़ती हुई सूर्यरश्मि से जैसे चमक उठा। ___ तारा के तारक नेत्र पूरे उत्साह से उसका स्वागत कर रहे थे, और चंदन तो अपनी मुक्त प्रसन्नता से जैसे सबको छाप रहा हो। चंदन राजकुमार को भाभी और कनक के पास पकड़ ले गया"ओह ! देखा भाभी, जनाब कितने गहरे हैं !" __कनक अब राजकुमार से आँखें नहीं मिला सकती, राजकुमार को देखती है, तो जैसे कोई उसको गुदगुदा दता है। और, उससे सहानुभूति रखनेवाली उसकी दीदी और चंदन भी इस समय उसकी लज्जा के तरफदार न होंगे, उसने समझ लिया। राजकुमार के पकड़ आते ही वह उठकर तारा की दूसरी बाल सटकर बैठ गई । उसकी बेंच पर राजकुमार और चंदन बैठे । राजकुमार को देखकर तारा सस्नेह हँस रही थी- तो यह कहिए, आप दोनो सधे हुए थे, यह अभिनय