पृष्ठ:अप्सरा.djvu/१५२

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अप्सरा अब तक दिखलाने के लिये कर रहे थे। आपने अभिनय की सफलता में कमाल कर दिया। आप लोगों को प्रसन्न करना भी तो धर्म है।" राजकुमार मुस्किराता जाता था। कनक दीदी की आड़ में छिपकर हँस रही थी। चंदन बड़ा तेज था । उसने सांचा, आनंद के समय जिवना ही चुप रहा जाता है, आनंद उतना ही स्थायी होता है, और तभी उसके अनुभव का सच्चा सुख भी प्राप्त होता है । इस विचार से उसने प्रसंग बदलकर कहा, मामी, ताश तो होंगे? ___ एक बॉक्स में पड़े तो थे।" ___ 'निकाल दो, अच्छा, मुझे गुच्छा दे और किस बॉक्स में हैं, बतला दे, मैं निकाल लें।" चंदन ने हाथ बढ़ाया। तारा स्वयं उठकर चली । “रज्जू बाबू, यह बॉक्स उताये।" राजकुमार ने उठकर ऊपरवाला तारा का कैशबॉक्स नीचे रख उस बड़े बॉक्स को उतार लिया। खालकर तारा ने वाश निकाल लिए। कौन किस तरफ हो, इसका निर्णय होने लगा । राजकुमार बॉक्सों को उठाकर रखने लगा । फैसला नहीं हो रहा था । चंदन कहवा था, तुम दोनो एक तरफ़ हो जाओ, मैं और राजकुमार एक तरफ । पर तारा चंदन को लेना चाहती थी। क्योंकि मजाक के लिये मौका राजकुमार और कनक को एक तरफ करने में था दूसर उनमें चंदन खेलता भी अच्छा था । कनक सोचती थी, दीदी हार जायगी, वह जरूर अच्छा नहीं खेलती होगी। अपनी ही तरह दिल से तारा भी कनक को कमजोर समझ रही थी। राजकुमार जरा-सी बात के लंबे विवाद पर चुपचाप हँस रहा था। कनक ने खुलकर कह दिया, मैं छोटे साहब को लँगी। यही फैसला रहा। अब बात उठी, क्या खेला जाय । चंदन ने कहा, ब्रिज । तार, इनकार कर गई। वह ब्रिज अच्छा नहीं जानती थी। उसने कहा, बादशाह-पकड़ । कनक हँसने लगी। चंदन ने कहा, अच्छा एंटी