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१५० अप्सरा लिये किताबों पर मालिक का नाम लिख देते थे, इस तरह अपने यहाँ छिपाकर पढ़ते थे। राजकुमार जब इस कृत्य में लीन था, तब चंदन कनक के मकान में था। राजकुमार के यहाँ से सामान ले आने और टो के संबंध की बातें जानने के लिये और उत्सुक हो रहा था। वह सीधे राजकुमार के पास ही जाता, पर कनक को बहू के भाव न समझ सकने के कारण कष्ट हो, इस शंका से पहले कनक के हो यहाँ गया । कनक चंदन को अपने यहाँ पाकर बड़ी प्रसन्न हुई। चालाक चंदन ने बहू का भीतरी मतलब, जिससे बहू उसके मकान नहीं गई, कुछ सच और कुछ रँगकर खूब समझाया। चंदन के सत्य का वो कुछ असर कनक पर पड़ा, पर उसकी रँगामेजी से कनक के दिल में दीदी का रंग फीका नहीं पड़ा। कारण, उसने अपनी ही आँखों दीदी की उस समय की अनुपम छवि देखी थी.जिसका परनसर खयाल बह किसी तरह भी न छोड़ सकी। वह दीदी पुरानी बादतों से मजबूर है, यह सिर्फ उसने सुन लिया, और सभ्यता की खातिर इसके बाद एक हाँ कर दिया । चंदन ने समझा, मैंने खूब समझाया । कनक ने दिल में कहा, तुम कुछ नहीं समझे। चंदन की इच्छा न रहने पर भी कनक ने उसे जल-पान कराया, और फिर यह जानकर कि वह राजकुमार के यहाँ जा रहा है, उससे आग्रह किया कि वह और राजकुमार आज शाम चार बजे उसके यहाँ आ जायँ, और वहीं भोजन करें। अंदन ने निमंत्रण स्वीकार कर लिया। एवरकर अपनी मोटर पर राजकुमार के यहाँ चला। राजकुमार ने नया मकान बदला था, इसका पता तो चंदन को मालूम था, पर कहाँ है, नहीं जानता था। अकः दो-एक जगह पूछकर, रुक-रुककर जाना पड़ा। राजकुमार अपने किताबी कार्य से निवृत्त होकर चाय मँगवाकर पायम से पी रहा था। . चंदन पहले सीधे मकान के मैनेजर के पास गया। पूछा, १०० कमरे का कितना किराया बाकी है ,