पृष्ठ:अप्सरा.djvu/१७०

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अप्सरा २६३ बड़ी देख-भाल के बाद एक अँगूठी उन्हें बहुत पसंद आई। हारजड़ी थी। कीमत हजार रुपए । खरीद लिया । उसमें खूबी यह थी कि 'सती' शब्द पर, नग की जगह, हीरक-चूर्ण जड़े थे, जिनसे शब्द जगमगा रहे थे। राजकुमार से खबर पा भेंट की चीजें लेकर नंदनसिंह बहू को देखने ऊपर चले । तारा कमरे के दरवाजे पर खड़ी थी। एक बार कनक को देखकर दरवाजा खोल दिया। नंदन ने वस्तुएँ तारा के सामने टेबिल पर रख दीं। अँगूठी पहना देने के लिये दी) अँगूठी के अक्षर पढ़कर, प्रसन्न हो, तारा ने कनक को पहना दी, और कहा, वहू, तुम्हारे जेठ तुम्हारा मह देखेंगे। राजकुमार नीचे चंदन के पास उतर गया। तारा ने कनक का मुँह खोल दिया। जिस रूप में उसने बहू को सजा रक्खा था, उसे देखकर नंदन की तबियत भर गई। प्रसन्न होकर कहा, बहू बहुत अच्छी है । कनक अचंचल पलकें झुकाए हुए बैठी रही। हमारी एक साध बहू, और तुम्हें पूरी करनी है, हमें एक भजन गाकर सुना दो, याद हो तो गुसाइजी का।" नंदन ने कहा। तारा ने कनक से पूछा, उसने सिर हिलाकर सम्मति दी। __ तारा ने कहा, उस कमरे से सुनिएगा, और छोटे साहब को बुला दीजिएगा। ____राजकुमार और चंदन श्राप ही तब तक ऊपर आ गए । तारा चंदन से तबला बजाने का प्रस्ताव कर मुस्किराई। चंदन राजी हो गया। कमरे में एक बॉक्स हारमोनियम था । चंदन तबलों की जोड़ी ले आया। राजकुमार बाहर कर दिया गया। भीतर तारा, कनक और चंदन रहे। स्वर मिलाकर कनक गाने लगी भीरामचंद्र कृपालु भजु मन हरन भव-भय दारुनम् । . नव-कंन लोचन, कंज मुख, कर कंज, पद कंजारनम् । कंदर्प अगनित-अमित छवि नव-नील नीरज सुंदरम् । पर पीत मानहु तहित सुचि रुचि नौमि अनकसुतावरम् ।