सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:अप्सरा.djvu/१७१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

१६४ प्रासय _____एक-एक शब्द से कनक अपने शुद्ध हुए हृदय से भगवान् श्रीराम चंद्रजी को अर्घ्य दे रही थी। चंदन गंभीर हो रहा था। तारा और नंदन रो रहे थे। ____ नंदन ने राजकुमार को अप्सरा-विवाह के लिये हार्दिक धन्यवाद दिया। कनक के रुपहले तार से चमचमाते हुए भावना-सुंदर बेफॉस स्वर की बड़ी तारीफ थी। ___ तारा ने चंदन की ठेकेबाजी पर चुटकियाँ कसी, कनक का अमित, शांत-मुख चूमकर, परी-बहू श्रुति-सुखद शब्द सुना कुछ उभाड़ दिया। ____ नंदन ने छोटे भाई से कहा--"अब तुम्हारे लखनऊ जाने की जरूरत न होगी। वकील की चिट्री श्राई है, पुलिस ने लिखा-पढ़ी करके तुम्हारा नाम निकाल दिया।" चंदन ने भी सिकोड़कर सुन लिया। ___ नंदन और राजकुमार बातचीत करते हुए नीचे उतर गए। नंदन राजकुमार को कुछ उपदेश दे रहे थे। .. ___तारा ने चंदन से बहू के पुष्प-विसर्जनोत्सव पर गंगाजी चलने के लिये कहा । यह कार्य अंत तक अपने ही सामने करा देना उसे पसंद आया। कनक के मोजे उतरवा दिए, और देव-कार्य के समय सदा नंगे-पैर रहने का उपदेश भी दिया। गंगाजी में कनक के आँचल का फूल छड़वा, कालीजी के दशन करा जब वह लौटी, तब आठ बज रहे थे। कतक ने चलने की आज्ञा मॉगी। बिदा हो, प्रणाम कर, चंदन और राजकुमार के साथ घर लौटी। सर्वेश्वरी बड़ी उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रही थी। उसने सोच लिया है. अब इस मकान में उसका रहना ठीक नहीं। जिंदगी में उपार्जन उसने बहुत किया था। अब उसकी चित्त-वृत्ति बदल रही थी। कलकत्ता आना सिर्फ उपार्जन के लिये था। अब वह भी अपने हिदूविचारों के अनुसार जीवन के अंतिम दिवस काशी ही रहकर बाबा विश्वनाथ के दर्शन में पार करना चाहती थी। बैंकों में चार लाख से