पृष्ठ:अप्सरा.djvu/१७४

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अप्सरा १६७ ____ कनक ने कहा, अम्मा, छोटे साहब को एक हजार रुपए और चाहिए, मुझे चेक दे दीजिएगा। सर्वेश्वरी सुनकर चली गई। सोचा, शायद छोटे साहब इज्जत में बड़े साहब हैं। राजकुमार ने कहा- पेट तो अभी क्यों भरा होगा ?" . ___“पाकट कहो, साहित्यिक हो, बैल ?' उठते हुए चंदन ने कहा। राजकुमार मेंपकर उठा । कनक ने दोनो के हाथ धुला दिए । तौलिया दिया, हाथ पोंछ चुकने पर पान । अब तक दस का समय था । चंदन ने कहा- ये रुपए जो मेरे हक मे श्राए हैं, रखवा दो, मैं जरूरत पर ले लूँगा।" राजकुमार ने कहा-"मैंने अपने रुपए भी तुम्हें दिए।" "तो इन्हें भी रक्खो जी, कितने हैं सब कनक ने धीमे स्वर से कहा-"दस हजार।" "अच्छा, हजार-हजार के तोड़े हैं। सुनो, अब मैं जाता हूँ। राजकुमार से कहा, "श्राज तो तुम अपनी तरफ से यहाँ रहना चाहते ____ कनक लजाकर कमरे से निकल गई। राजकुमार ने कहा-"नही, मै तुम्हारे साथ चलता हूँ।" ____ "अब आज मेरी प्रार्थना मंजूर करके रह जाओ, क्योंकि कल तुमसे बहुत बातें सुनने को मिलेंगी।" ____“तो कल स्टेशन पर या भवानीपुर में मिलना, मैं सुबह चला जाऊँगा।" ___ अच्छी बात है, जी सलाम।" चंदन उतरने लगा। कनकरे पकड़ लिया--"तुम भी रहो। "और कई काम हैं, तुम्हारे पैर पडू छोड़ दो।" "अच्छा चलो, मैं तुम्हें छोड़ आऊँगी।" गाड़ी मँगवा ली। चंदन को चढ़ाकर कनक भी बैठ गई। चोरबापान चलने के लिये चंदन ने कहा।