पृष्ठ:अप्सरा.djvu/३४

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अप्सरा

अप्सरा नहीं । वे ऐसी हालत में बहुत बड़ा जोर कुछ दे नहीं सकते। और, उन पर इस पत्र से एक दूसरा मुक्कदमा चल सकता है। पर यह सब मुफ्त ही दिक्कत बढ़ाना है। अगर आसानी से अदालत का काम हो जाय, तो इतनी परेशानी से क्या फायदा ?" ___"आसानी से अदालत का काम कैसे ?" ___ "तुम मकान जाओ, मैं हैमिल्टन को लेकर आती हूँ, मेरी उनकी अच्छी जान-पहचान है। खूब सजकर रहना और अँगरेजी तरीके से नही, हिंदोस्तानी तरीके से।" कहकर कैथरिन हँसने लगी। ___ आचार्या से मुक्ति का अमोघ मंत्र मिलते ही कनक ने भी परी की तरह अपने सुख के काल्पनिक पंख फैला दिए । ____ कैथरिन गैरेज में अपनी गाड़ी लेने चली गई, कनक रास्ते पर टहलती रही। ____ कैथरिन हँसती हुई, “जल्दी जाओ" कहकर रोडन स्ट्रीट की तरफ चली; कनक बहूबाजार की तरफ। घर में कनक माता से मिली। सर्वेश्वरी को दारोगा की गिरफ्तारी से कुछ भय था। पर कनक की बातों से उसकी शंका दूर हो गई। कनक ने माता को अच्छी तरह, थोड़े शब्दों में, समझा दिया। माता से उसने कुल जवर पहना देने के लिये कहा, सर्वेश्वरी हँसने लगी। नौकर को बुलाया। जेवर का बाक्स उठवा तिमंजिले पर कनक के कमर को चली। ___ सब रंगों की रेशमी साड़ियाँ थीं । कनक के स्वर्ण-रंग को दोपहर की आभा में कौन-सा रंग ज्यादा खिला सकता है, सर्वेश्वरी इसके जांच कर रही थी। उसकी देह से सटा-सटाकर उसकी और साड़ियो की चमक देखती थी। उसे हरे रंग की साड़ी पसंद आई। पूछा- 'बता सकती हो, इस समय यह रंग क्यों अच्छा होगा ?" ___“उहूँ" कनक प्रश्न और कौतुक की नजर से देखने लगी। "तेज धूप में हरे रंग पर नजर ज्यादा बैठती है, उसे आराम मिलता है।