पृष्ठ:अप्सरा.djvu/८१

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अप्सरा भी चित्र नहीं देख पड़ता। पहले की जितनी सुकुमार मूर्तियाँ कल्पना के जाल में आप ही फंस जाया करती थीं, अब वे सब जैसे पकड़ ली गई हैं। किसी ने उन्हें इस प्रलय के समय अन्यत्र कहीं विचार करने के लिये छोड़ दिया है। कनक मोटर पर आकर बैठ गई। "पर चलो।" ड्राइवर मोटर ले चला। कनक उतरी कि एक दरवान ने कहा, मेम साहब बैठी हैं। कनक सीधे अपने पदनेवाले कमरे में चली गई। मेम साहब सर्वेश्वरी के पास बैठी हुई बातचीत कर रही थीं। राजकुमार के जाने के बाद से सर्वेश्वरी के मन में आकस्मिक एक परिवर्तन हो गया। अब वह कनक पर नियंत्रण करना चाहती थी। पर उसे मनुष्य के स्वभाव की बड़ी गहरी पहचान थी। कुछ दिन अभी कुछ न बोलना ही वह उचित समझती थी। कैथरिन की इस संबंध में उसने सलाह ली। बहुत कुछ वार्तालाप हो चुकने के बाद उसने कैथरिल को कनक के गार्जन के तौर पर कुछ दिनों के लिये नियुक्त कर लेना उचित समझा। कैथरिल ने भी 9 महीने तक के लिये आपत्ति नहीं की। फिर उसे योरप जाना था। उसने कहा था कि अच्छा हो, अगर उस समय वे कनक को पश्चिमी आर्ट, नृत्य, गीत और अभिनय की शिक्षा के लिये योरप मेज दें। कनक में जैसा एकाएक परिवर्तन हो गया था, उसका खयाल कर सर्वेश्वरी इस शिक्षा पर उसके प्रवृत्त होने की शंका कर रही थी। अतएव कैथरिन को मोड़ फेर देने के लिये नियुक्त कर लिया था। कनक के आने की खबर मिलते ही सर्वेश्वरी ने बुलाया। "माजो बुलाती हैं। मयना ने कहा । कनक माता के पास गई। 'मेम साहब से तुम्हारी ही बातें हो रही थीं।" कनक की मौहों में बल पड़ गए। कैथरिन ताई गई। कहा- यही कि अगर कुछ और बाकायदा पढ़ लेती, तो और अच्छा होता। कनक खड़ी रही।