पृष्ठ:अप्सरा.djvu/८२

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अप्सरा "तुम्हारी तबियत कैसी है ?" "अच्छी है।" कनक ने तीव्र दृष्टि से कैथरिन को देखा। "योरप चलने का विचार है ?" "हाँ, सेप्टेंबर में तै रहा।" "अच्छी बात है।" सर्वेश्वरी कनक की बेफाँस आवाज से प्रसन्न हो गई। माता की बगल में कनक भी बैठ गई। "विजयपुर के राजकुमार का राजतिलक है।" कनक काँप उठी, जैसे जल की तरंग, अपने मन में बहती हुई सोचने लगी-"राजकुमार का राजतिलक !” स्पष्ट कहा, "हमने बयाना ले लिया, दो सौ रोज, खर्च अलग।" . "हमें परसों पहुँच जाना चाहिए।" . "मैं भी चलूगी। “तुम्हें बुलाया है, पर हमने इनकार कर दिया।" . . कनक माता को देखने लगी। "क्या करते १ हमने सोचा, शायद तुम्हारा जाना न हो।" "नहीं, मैं चलूगी।" ... "तुम्हारे लिये तो और आग्रह करते थे। मेम साहब, क्या उस वक्त, साथ चलने के लिये आपको कुसंत होगी ?" "फुसंत कर लिया जायगा। मेम साहब की आँखें रुपयों की चर्चा से चमक रही थीं। "तुमको ५०० रोज देंगे, अगर तुम महफिल में जाओ। यो १००) रोज सिर्फ उनसे मुलाकात कर लेने के।" कनक के हृदय में एक साथ किसी ने हजार सुइयाँ चुमो दी। दर्द को दबाकर बोली-“उतरूंगी।" सर्वेश्वरी की मुर्भाई हुई लता पर आपाट की शील वर्षा हो गई।