पृष्ठ:अप्सरा.djvu/८६

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७९ युवती उनकी दशा देख राजकुमार के गार्हस्थ्य-शान पर खूब हँसी। जूते, धोती, कमीज़, कोट अलग कर लिए। कमीज और कोट से एसेंस की महक आ रही थी। भाड़-भाड़कर कपड़ों की चमक देखने लगी। दाहनी बाँह पर एक लाल धब्बा था। देखा, गौर से फिर देखा, संदेह जाता रहा । वह सिंदूरही का धब्बा था। अब राजकुमार पर उसका संदेह हुआ । रज्जू बावू को वह महावीर तथा भीष्म ही की तरह चरित्रवान् समझती थी। उसके पति भी रज्जू बाबू की इज्जत करते थे। उसकी सास उन्हें चंदन से बढ़कर समझती थी। पर यह क्या ? यह सिंदूर ? सूघा, ठीक, सिंदूर ही था। . युवती ने संदेह को संप्रमाण सत्य कर लेने के निश्चय से राजकुमार को बुलाया । एकांत था । युवती के हाथ में कोट देखते ही राजकुमार की दृष्टि में अपराध की छाप पड़ गई। युवती हँसने लगी-मैं समझ गई। राजकुमार ने सर झुका लिया। “यह क्या है ?” युवती ने पूछा। "कोट ।" "अजी, यह देखो, यह । धब्बा दिखाती हुई। "मैं नहीं जानता।" "नहीं जानते ?" "यह किसी की माँग का सेंदुर है जनाब।" सेंदुर सुनते ही राजकुमार चौंक पड़ा। -"सेंदुर ?” "हाँ-हो- सेदुर-सेंदुर-देखो। राजकुमार की नजरों से वास्तव जगत् गायब हो रहा था । "क्या यह कनक की माँग का सेंदुर है ? तो क्या कनक ब्याही हुई है ?" हृदय को बड़ी लज्जा हुई कहा, “बहूजी, इसका इतिहास बहुर बड़ा है। अभी तक मैं चंदन की चिंता में था, इसलिये नहीं बतल सका।" "अब बतलायो।