अप्सरा "हाँ, मुझे कुछ छिपाना थोड़े ही है ? बड़ी देर होगी।" "अच्छा, ऊपर चलो।" युवती राजकुमार को ऊपर एक कमरे में ले गई। युवती चित्त को एकाग्र कर कुल कहानी सुनती रही। “कहीं-कहीं छूट रही है, जान पड़ता है, सब घटनाएँ तुम्हें नहीं मालूम । जैसे उसे तुम्हारी पेशी की बात कैसे मालूम हुई, उसने कौन- कौन-सी तदबीर की ?" युवती ने कहा। ___"हाँ मुमकिन है। जब मैं चलने लगा, तब उसने कहा भी था कि बस आज के लिये रहो, तुमसे बहुत कुछ कहना है। ___ “आह ! सब तुम्हारा कुसूर है, तुम इतने पर भी उस पर कलंक की कल्पना करते हो?" ___राजकुमार को एक हूक लगी। घबराया हुआ युवती की ओर देखने लगा। ___ "जिसने तुम्हारी सबसे नजदीक की बनने के लिये इतना किया, तुम्हें उसे इसी तरह का पुरस्कार देना था ? प्रतिज्ञा तो तुमने पहले की थी, कनक क्या तुम्हें पीछे नहीं मिली ?" राजकुमार की छाती धड़क रही थी। “लोग पहले किसी भी सुंदर वस्तु को उत्सुक आँखों से देखते है, पर जब किसी दूसरे स्वार्थ की याद आती है, आँखें फेरकर चल देते हैं, क्या तुमने भी उसके साथ ऐसा ही नहीं किया ?” युवती ने राजकुमार के हृदय ने कहा, हाँ, ऐसा ही किया है। जबान से उसने कहा, नीचे कुछ लोगों को उसके चरित्र की अश्राव्य आलोचना करते हुए मैंने सुना है। "भूठ बात । मुझे विश्वास नहीं । तुम्हारे कानों ने तुम्हें धोखा दिया होगा। और किसी के कहने ही पर तुम क्यों गए ? इसलिये कि तुम खुद उस तरह का कुछ उसके संबंध में सुनना चाहते थे।" राजकुमार का मन युवती की तरफ हो गया ।
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