पृष्ठ:अप्सरा.djvu/८८

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अप्सरा __ युवती मुसकिराई-"तो चलते समय की धर-पकड़ का दान है- क्यों ?" राजकुमार ने गर्दन झुका ली। ___"इतने पर भी नहीं समझे रज्जू बाबू ? यह आप ही के नाम का सिंदूर है।" राजकुमार को असंकुचित देखती हुई युवती हँस रही थी-'आपसे प्रेम की भी कुछ बातें हुई ?" ___ "मैंने कहा था, तुम मेरी कविता हो।" युवती खिलखिलाकर हँसी-कैसा चोर पकड़ा? फिर आपकी कविता ने क्या जवाब दिया ?" "कवि लोग अपनी ही लिखी पंक्तियाँ मूल जाते हैं। "कैसा ठीक कहा | क्या अब भी आपको संदेह है ?" राजकुमार के मस्तक पर एक भास्सा आ पड़ा। "रज्जू बाबू, तुम गलत राह पर हो।" राजकुमार की आँखें छलछला आई। "मैं बहुत शीघ्र उससे मिलना चाहती हूँ। छिः, रज्जू बाबू, किसी की जिंदगी बरबाद कर दोगे? और उसकी, जवान से जिसके हो चुके। हम भी जायँगे दीदी" एक आठ साल का बालक दौड़ता हुआ ऊपर चढ़ गया और दोनो हाथों में अपनी बैठी हुई बहन का गला भर लिया-दीदी-आज राजा साहब के यहाँ गाना होगा। हम मी जायँगे। बड़े दादा जायँगे, मुन्नो जायगा । हम भी जायेंगे। बालक उसी तरह पकड़े हुए थिरक रहा था। "किसका गाना है ?” युवती ने बच्चे से पूछा। __“कनक, कनक, कनक का" बालक आनंद से थिरक रहा था। युवती और राजकुमार गंभीर हो गए। बच्चे ने गला छोड़ दिया। बहन की मुद्रा देखी, फिर फुर्ती से जीने के नीचे उतर, दौड़ता हुआ ही मकान से बाहर निकल गया। युवराज का अभिषेक है, यह दोनो जानते थे। विजयपुर वहाँ से