पृष्ठ:अप्सरा.djvu/८९

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अप्सरा मील-भर है। युवती के पिता स्टेट के कर्मचारी थे। बालक की बात पर अविश्वास करने का कोई कारण न था। ___ "देखा बहूजी," राजकुमार ने अपने अनुभव-सत्य की दृढ़ता से कहा। ___ "अभी कुछ कहा नहीं जा सकता ; रज्जू बाबू, किसके मन में कौन- सी भावना है, इसका दूसरा अनुमान लगाए, तो गलती का होना ही अधिक संभव है।" "अनुमान कमी-कभी सत्य ही होता है।" "पर तुम्हारी तरह का अनुमान नहीं।" अब तक कई लड़के आँगन में खड़े हुए तालियाँ पीटते थिरकते हुए, हम भी जायेंगे, हम भी जायँगे, सम स्वर में घोर संगीत छेड़े हुए थे। ___ युवती ने झरोखे से लड़कों को एक बार देखा । फिर राजकुमार की तरफ मुंह करके कहा कि बहुत अच्छा हो, अगर आज ही स्टेशन पर कनक से मिला जाय । गाड़ी, एक ही, पूरब की, चार बजे आती है। ___"नहीं, यह किसी तरह भी ठीक नहीं। आपको तो मैं मकान से बाहर निकलने की राय दे ही नहीं सकता, और इस तरह के मामले में !" "किसी बहाने मिल लेंगे", युवती उत्सुक हो रही थी। "किसी बहाने भी नहीं, बहूजी, स्टेट की बातें आपको नहीं मालूम।" ___ राजकुमार गंभीर हो गया। युवती त्रस्त हो संकुचित हो गई- "पर मुझे एक दफा जरूर दिखा दो", करुणानित सहानुभूति की दृष्टि से देखती हुई युवती ने राजकुमार का हाथ पकड़ लिया। "अच्छा (१४) दो रोज और बीत गए । अंगों के ताप से कनक का स्वर्ण-रंग और चमक उठा । आँखों में भावना मूर्तिमती हो गई। उसके जीवन के प्रखर स्रोत पर मध्याह्न का तपन तप रहा था, जिससे वाष्प के बाह्या- वरण के भीतर प्रवाह पर भावनाओं के सूर्य के सहस्रों ज्योतिर्मय पुष्प खुले हुए थे। पर उसे इसका ज्ञान न था। वह केवल अपने बाहरी आवरण को देखकर दैन्य में मुरझा रही थी। जिस लेह की डोर से