पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/१२

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- दो और मध्य के आठ अंग हैं। बारह अंग ये हैं-१ अविद्या, २ संस्कार, ३ विज्ञान, ४ नामरूप, ५ षडायतन, ६ स्पर्श, ७ वेदना, ८ तृष्णा, ९ उपादान, १० भव, ११ जाति, १२ जरा- मरण (बौद्ध-धर्म-दर्शन, पृ० २२५) । तृतीय कोशस्थान की कारिका २०-२४ और उनके भाष्य में द्वादशांग प्रतीत्य-समुत्पाद का स्पष्ट विवेचन पाया जाता है- स प्रतीत्य समुत्पादो द्वादशांगस्त्रिकाण्डकः। पूर्वापरान्तयोद्धे द्वे मध्येऽष्टी परिपूरिणः (३।२०) यदि पाँच स्कन्धों को हम एक इकाई मान लें तो उनके सन्तान' या प्रवाह या पुनः पुनः प्रवर्तन में अविद्या और संस्कार ये दो अंग पूर्व जन्म से, जाति और जरा-मरण ये दो अनागत जीवन या अपरान्त भव से, और शेष आठ वर्तमान सांसारिक जीवन से सम्वन्ध रखते हैं। अविद्या और संस्कार गर्भस्थापन से पूर्व की अवस्थाएं हैं। उसके बाद पांचों स्कन्ध गर्भ में आते हैं। वह कुक्षि- गत या योनिगत अनुपजात दशा विज्ञान है। उसके वाद जन्म लेने तक दो अवस्थाएँ होती हैं जिन्हें नाम-रूप (रूप, वेदना, संज्ञा, संस्कार ये नामरूप हैं) और षडायतन (मनः षष्ठानि इन्द्रि- याणि)हैं। जव पडायतन के रूप में यह संघातमय शरीर जन्म ले लेता है,तो उसके बाद स्पर्श, वेदना, तृष्णा, उपादान, और भव ये पांच अवस्थाएं होती हैं। कर्म की वह शक्ति भव है जो कृत और उपचित कार्यो के फलस्वरूप पुनर्भव का कारण बनती है। शरीर के रूप में संगठित पंच स्कन्ध जब विखर जाते हैं तो अनागत जीवन में जाति और जरामरण ये दो अवस्थाएँ होती हैं। वर्तमान जीवन का विज्ञान (अर्थात् योनिगत पंच स्कन्ध) अगले जीवन या पुनर्भव के लिये जाति के रूप में विद्यमान रहता है और वर्तमान जीवन के नामरूप, पडायतन, स्पर्श और वेदना ये अगले जीवन को उत्पन्न करने के लिये जरा-मरण के रूप में रहते हैं। इन वारह अंगों का विवरण इस प्रकार समझना चाहिए- १. अविद्या--इस जीवन में जितने क्लेश हैं, वे जन्म से पूर्व अविद्या की अवस्था में रहते हैं। अविद्या पूर्वजन्म की क्लेश दशा है। जितने क्लेश या दुःख हैं सब अविद्या के सहचारी हैं। अविद्या वीज की तरह उनको इस जन्म में अपने साथ ले आती है, जैसे राजा के साथ उसके अनुयायी स्वतः आ जाते हैं। पंच स्कन्धों की पूर्वजन्म सन्तति अविद्या है। २. संस्कार-जीवन के पुण्यापुण्य कर्मो को पूर्वदशा या पूर्व जन्म में अस्तित्व संस्कार कहलाता है। संस्कार पूर्वजन्म की कर्मावस्या है। अविद्या और संस्कार की पूंजी से या उनके धरातल पर पंच स्कन्द शरीर रूप में जन्म के लिये गर्भ में आते हैं। विश्व में जितने प्राणी हैं सब गर्भजनित सृष्टि है। अविद्या और संस्कार वर्तमान जीवन के लिये आलम्बन या प्रतिष्ठा का कार्य करते हैं। दोनों में एक के अभाव में भी वर्तमान भव नहीं हो सकता। ३. विज्ञान-इस जन्म के लिये रूप-वेदना-संज्ञा-संस्कार-विज्ञान का जो वीजारोपण है वही विज्ञान है। यह पंच स्कन्वों की योनिगत पूर्वावस्या है। यह अवस्था विज्ञान या मनःरूप है जो सूक्ष्म होते हुए स्थूल को अपने में अन्तर्लीन रखती है। ४. नामरूप---जन्म से पूर्व जो गर्भित दशा में पंच स्कन्धों की संवृद्धि है वह नाम-रूप अवस्था है। विज्ञान क्षण से लेकर पडायतन या स्थूल देह की उत्पत्ति के क्षण तक की अवस्था नाम-