पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/१२४

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अभिधर्मकोश १. आरूप्यधातु में उपपन्न सत्व चक्षु-श्रोत्र-प्राण और जिह्वेन्द्रिय से युक्त नहीं होता। कामधातु का सत्व इन इन्द्रियों से समन्वागत नहीं होता यदि उसने (कललादि अवस्था में) उनको प्रतिलब्ध नहीं किया है या यदि वह (अन्धत्वादि अवस्था में, क्रममरण में) उनसे विहीन हो गया है। २. आरूप्यधातु में उपपन्न सत्व के कायेन्द्रिय नहीं होता। ३. आरूप्यधातु और रूपधातु में उपपन्न सत्व स्त्रीन्द्रिय से समन्वागत नहीं होता। काम- धातु में उपपन्न सत्व उससे समन्वागत नहीं होता यदि उसने उसे प्रतिलब्ध नहीं किया है या उससे विहीन हो गया है । यही पुरुषेन्द्रिय के लिए है। [१३९] ४. चतुर्थ ध्यान में, द्वितीय ध्यान में, आरूप्यों में उपपन्न पृथग्जन' सुर्खेन्द्रिय से समन्वागत नहीं होता। ५. चतुर्थ ध्यान, तृतीय ध्यान, आरूप्यों में उपपन्न पृथग्जन सौमनस्येन्द्रिय से समन्वागत नहीं होता। ६. रूपधातु और आरूप्यधातु में उपपन्न सस्व दुःखेन्द्रिय से समन्वागत नहीं होता। ७. कामवीतराग दौर्मनस्यन्द्रिय से समन्वागत नहीं होता । ८. समुच्छिन्नकुशलमूल (४,७९) पुद्गल श्रद्धादि पंचेन्द्रियों से समन्वागत नहीं होता ! ९. ने पृथन्जन, न फलस्थ आर्य, अनाज्ञातमाज्ञास्यामीन्द्रिय से होता है। १०. पृथग्जन, दर्शनमार्गस्थ (६.३१ ए-बी) और अशैक्षमार्गस्थ आशेन्द्रिय से असम- न्वागत होते हैं। ११. पृथग्जन और शैक्ष आज्ञातावीन्द्रिय से असमन्वागत होते हैं । अप्रतिषिद्ध अवस्थाओं में यथोक्त समन्वागम जानना चाहिए । चतुभिः सुखकायाभ्यां पंचभिश्चक्षुरादिमान । सौमनस्यी च दुःखी तु सप्तभिः स्त्रीन्द्रियादिमान् ॥१८॥ अष्टाभिरेकादशभिस्त्वाशाज्ञातेन्द्रियान्वितः । आज्ञास्यामीन्द्रियोपेतस्त्रयोदशभिरन्वितः ॥१९॥ १८ ए. जो सुख या कायेन्द्रिय से समन्दागत है वह अवश्य चार इन्द्रियों से समन्वागत है।' जो सुखेन्द्रिय से समन्वागत है वह जीवितेन्द्रिय, मन-इन्द्रिय, उपेक्षेन्द्रिय से भी समन्वागत होता है। जो कायेन्द्रिय से समन्वागत है वह इन्हीं तीन इन्द्रियों से भी समन्वागत होता है। आर्य 'अनास्त्रव' सुसन्द्रिय से समन्वागत होता है क्योंकि भूमिसंचार से उसके अनास्रव सुख का त्याग नहीं होता। (पृ. १४१, टिप्पणी २ देखिए) शुमान चाङ ने इसे छोड़ दिया है--८.१२ ए-बी देखिए। चतुभिः सुखकायाभ्याम् [व्या० ११९.८ समन्वागत २