पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/१२७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

द्वितीय कोशस्थान : इन्द्रिय

सल्पैिनिःशुभोऽष्टाभिविन्मनःकायजीवितैः । युक्तो वालस्तथारूप्य उपेक्षायुर्मनःशुभैः ॥२०॥ जो पुद्गल सर्वाल्प इन्द्रियों से समन्वागत होता है वह कितनी इन्द्रियों से समन्वागत होता है (विभापा, १५०, १३) ? २० ए-बी. जो निःशुभ है वह कम से कम ८ इन्द्रियों से -कायेन्द्रिय, वेदनेन्द्रिय, जीविते- न्द्रिय, मन-इन्द्रिय से-समन्वागत होता है । निःशुभ पुद्गल वह है जिसके कुगलमूल समुच्छिन है । वह अवश्य कामधातु का है (४. ७१); वह वीतराग नहीं हो सकता । अतः परिगणित इन्द्रियों से वह अवश्य समन्वागत होता है । कारिका में वेदना के लिए 'विद्' का प्रयोग है अर्थात् 'जो संवेदन करता है' (वेदयते इति कृत्वा)----इसमें 'कर्तरि विवप्' है । अथवा विद् = 'वेदन'-भावसाधन है (आणादिकः चित्रप्) । २० सी-डी. इसी प्रकार भामप्योपपन्न बाल ८ इन्द्रियों में अर्थात् उपेलेन्द्रिय, जीदितेन्द्रिय, मन-इन्द्रिय और गुभ इन्द्रियों से समन्वागत होता है । [१४३] पृथग्जन वाल कहलाता है क्योंकि उनने सत्यदगंन नही किया है । शुभेन्द्रिय श्रद्धादि पंचेन्द्रिय है क्योंकि बालाधिकार है, क्योंकि अप्वाधिकार है इसलिए आजास्याम:- न्द्रियादि अनानक इन्द्रियों के ग्रहण का प्रसंग नहीं होता। बहुभिर्युयक्त एकानविंशत्याऽमलवजितः । द्विलिंग आर्यराग्येकलिंगद्वयमलजितः ॥२१॥ जो अधिक से अधिक इन्द्रियों से समन्वागत होते हैं वह कितनी इन्द्रियों से समन्वागत होते २१ ए-सी. अधिक से अधिक १९ : उभयव्यंजन, बमलेन्द्रियों को बजित कर ।' उभयव्यंजन अवश्य कामयातु का है। यह बीत मग नहीं है। वह पद्धादि पनेन्द्रियों ने समन्वागत हो सकता है; वह समग्रचक्षुरादिका हो सकता है। किन्तु वह पृयन्जन है : अतः आनास्यामौन्द्रियादि अनालय इन्द्रियां उसमें अवश्य नहीं होती। कारिता में अनायब इन्द्रियां 'अमल' कही गई है 1 सानास्यानि, आन और आमातापि अनान्लव है क्योंकि वह न आलम्बनतः, न संप्रयोगतः (२.१५) साबय है । २१ नो-डॉ. रानो आयं एक लिंग और दो अनावव इन्द्रियों को वजित कर नव इन्द्रियों ने समन्वागत हो जाता है । मापयिज्जीवितमनः] सल्लिनिःशुभोवनिः । या० १२२.५ में अष्टभिः के त्यान में अप्याभिः पाठ है जो छन्दोऽनुफल नहीं है। 3 [सारथ्येप सपा यान] उपदावनःशुभः । [या० १२२.२२] सहभिर] एकोनवित्यामल [जितः । हिलिगः] [सम्पार्यों गिरामन्द्ववजितः ।।] २