पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/१२९

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द्वितीय कोशस्यान : परमाणु ११५ [१४५]१. काम धातु में जव परमाणु में शब्द (शब्दायतन) उत्पन्न नहीं होता, जब कोई इन्द्रिय उत्पन्न नहीं होती तब यह नियत रूप से अष्टद्रव्यक ही होता है, इससे न्यून द्रव्य का नहीं होता : अर्थात् चार महाभूत (१.१२ सी) और चार भौतिक रूप-रूप (१.१० ए), गन्ध, रस, स्प्रष्टव्य (२.५० सी-डी; ६५ ए-बी) २. जब परमाणु में शब्द उत्पन्न नहीं होता किन्तु कायेन्द्रिय (कायायतन) १ होता है तो इसमें एक नवाँ द्रव्य, कायेन्द्रिय द्रव्य होता है। ३. जब परमाणु में शब्द उत्पन्न नहीं होता किन्तु कायेन्द्रिय को वर्जित कर अन्य इन्द्रिय (चक्षुरिन्द्रिय आदि) होता है तो इसमें एक १०वाँ द्रव्य, अपरेन्द्रिय (चक्षुरिन्द्रिय आदि) द्रव्य होता है क्योंकि चक्षुश्रोत्रादि इन्द्रिय कायेन्द्रियप्रतिबद्ध हैं और पृथक्वर्ती आयतन है। ४. यदा पूर्वोक्त संघातपरमाणु सशब्द होते हैं तब यथाक्रम नव-दश-एकादश-द्रव्यक उत्पन्न होते हैं : वास्तव में जो शब्दायतन उपात्त (१.१० वी) महाभूतों से उत्पादित होता है वह इन्द्रिया- विनिर्भागी होता है । [१४६] ५. यदि पृथिवीधातु आदि चार महाभूतों का अविनिर्भाग है, यदि वह संघात- परमाणु में सहवर्तमान होते हैं तो यह कैसे है कि एक संघात में कठिन, द्रव, उष्ण या समुदीरणा का ग्रहण होता है और उसमें इन चार द्रव्यों या स्वभावों का युगपत् ग्रहण नहीं होता? हम किसी संघात में (पृथिवीधातु आदि) द्रव्यों में से उस द्रव्य की उपलब्धि करते हैं जो वहाँ पटुतम (स्फुटतम) होता है, जो प्रभावतः उद्भूत होता है, अन्य द्रव्यों की नहीं । यथा जब हम सूचीतूलीकलाप' का स्पर्श करते हैं तो हम सूची की उपलब्धि करते हैं, यथा जव हम लवणयुक्त सक्तु-चूर्ण खाते हैं तो लवणरस की उपलब्धि करते हैं। विभाग नहीं हो सकता परमाणु कहलाता है अर्थात् परमाणु अन्य रूप से, चित्त से कई भागों में विभक्त नहीं हो सकता । इसे सर्वसूक्ष्म रूप कहते हैं। क्योंकि इसके भाग नहीं हैं इसलिए इसे 'सर्वसूक्ष्म का नाम देते हैं। यथा सर्वसूक्ष्म काल को क्षण कहते हैं और यह अर्ध-क्षणों में विभक्त नहीं हो सकता (३.८६) । इन अणुओं का संघात जिसको असंहत नहीं कर सकते संधाताणु कहलाता है । काम में कम से कम आठ द्रव्यों का सहोत्पाद होता है और इनका अशन्द, अनिन्द्रिय संघातागु होता है। यह द्रव्य क्या है ?-चार महाभूत, चार उपादाय अर्थात् रूप, रस, गन्ध,स्प्रष्टव्य । जिन परमाणुओं में कायेन्द्रिय, चक्षुरादि होते हैं वह 'ऐटम' है। इनका यहाँ प्रश्न है, १.४४ ए-बी। एक शब्दपरमाणु में जो हस्त से उत्पादित होता है चार महाभूत, चार उपादाय रूप, शब्द और कायेन्द्रिय होते हैं: १० द्रव्य; जिह्वा से उत्पादित शब्द में ११ द्रव्य होते हैं। इसमें जिह्वेन्द्रिय की वृद्धि होती है, जिह्वेन्द्रिय के परमाणु अतीन्द्रिय जिह्वा पर अवस्थित होते हैं (अनुवादक को टिप्पणी) । संघभद्र १०, पृ० ३८३, कालम ३। तुल्यो वारणादिपुष्पमूलदण्डाः, याः 'सिका' । इति प्राकृतजनप्रतीताः [व्या० १२४.६]। ---जे० दलाक, फार्मेशन आफ दि मराठी लैंग्वेज, पृ० ४२ देखिए: सिंक (शिक्य) 'वस्तुओं के लटकाने की रस्सी, छिक्का । १