पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/२०९

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द्वितीय कोशस्थान : हेतु १९५ 1 लक्षण जाति, जरा, स्थिति और अनित्यता, सत्कायदृष्टि के कार्य और कारण दोनों हैं।' २५२] कुछ ओचार्य प्रकरणग्रन्थ के पाठ में यह शब्द छोड़ देते हैं : “और इस सत्कायदृष्टि से संप्रयुक्त धर्मो की।" काश्मीर वैभाषिकों के अनुसार यह शब्द ग्रन्थ में हैं और यदि वह नहीं हैं तो भी उनका पाठ होना चाहिये। अर्थ से ज्ञात है कि अपाठ में दोष है। अधिकारा- नुवृत्ति से इन शब्दों का ग्रहण होता है । प्रत्येक धर्म जो सहभूहेतुत्वेन हेतु है (यत्तावत् सहभूहेतुना हेतुः) सहभू हैं, किन्तु ऐसे सहभू हैं जो सहभूहेतु नहीं हैं : १. मूलधर्म के अनुलक्षण इस धर्म के सहभूहेतु नहीं हैं, (२-४६ ए-बी) २. यह अनुलक्षण अन्योन्य के सहभूहेतु नहीं हैं, ३. चित्तानुपरिवर्ती के अनुलक्षण चित्त के सहभूहेतु नहीं हैं, ४. यह अन्योन्य के सहभूहेतु नहीं हैं, ५. नीलादि भौतिक रूप (उपादायरूप) जो सप्रतिष और सहज हैं अन्योन्य के सहभूहेतु नहीं हैं, [२५३] ६. अप्रतिघ और सहज उपादायरूप का एक प्रदेश परस्पर सहभूहेतु नहीं है । दो संवरों को स्थापित करना चाहिये, (पृ.२४९ देखिये) ७. सर्व उपादायरूप यद्यपि भूतों के साथ उत्पन्न हुआ हो भूतों का सहभूहेतु नहीं है, ८. प्राप्तिमान् धर्म के साथ सहोत्पाद होने पर भी सहजप्राप्ति उसका सहभूहेतु नहीं होती। यह बाठ प्रकार के धर्म सहभू हैं किन्तु सहभूहेतु नहीं है क्योंकि फल, विपाक और निष्यन्द एक नहीं हैं (पृ.२५० देखिये)।--प्राप्तियाँ सदा धर्म की सहचरिष्णु नहीं हैं : वह धर्म की पूर्वज, पश्चात्कालज या सहज हैं (२.३७-३८)। सौत्रान्तिक सहभूहेतुत्व की आलोचना करता है । यह संव हो सकता है (सर्वमप्येतत् स्यात्) कि "जो सहभूहेतुत्वेन हेतु है वह सहभू है", एवमादि। लोक में कुछ का हेतुफलभाव सदा सुव्यवस्थापित हैः हेतुफल का पूर्ववर्ती है । इसी- ३ अक्लिष्ट दुःखसत्य [अर्थात् वह धर्म जो दुःख हैं किन्तु कुशल हैं] न सत्कायदृष्टिहेतुक है और न सत्कायदृष्टि का हेतु है । चीनी संस्करण, नैजियो १२९२ (२३.११, ३८ बी १०) और १२७७ (१०, ५८ बी ४), पूर्व पाठ के समान हैं। कुछ अंश छोड़ दिये गये हैं। (यह पद नहीं हैं : “इति प्रश्ने विसर्जन करोति" और "त्रिकोटिकम्, द्वितीया कोटि स्ति)।" जो धर्म सत्कायदृष्टिहेतुक हैं और सत्कायदृष्टि के हेतु हैं उनके अच्छे अन्य निर्देश हैं: (ए) दुःखदर्शनप्रहातव्य अतीत और प्रत्युत्पन्न अनुशय तथा तत्संप्रयुक्त दुःखसत्य [१२७७: और इन अनुशयों से संप्रयुक्त, इनके सहभू आदि दुःखसत्य], (बी) समुदयदर्शनप्रहातव्य अतीत-प्रत्युत्पन्न सर्वत्रग अनुशय और तत्संप्रयुक्त [१२७७ संप्रयुक्त, सहभू आदि] दुःखसत्य, (सी) सत्काय- दृष्टिसंप्रयुक्त अनागत दुःखसत्य, (डी) अनागत सत्कायदृष्टि और संप्रयुक्त धर्मों की जाति आदि।