पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/२५५

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२४२ अभिधर्षकोश 1 ८ के अनन्तर निवृताव्याकृत; निवृत्ताव्याकृत के अनन्तर ६; ३ के अनन्तर अनिवृतान्याकृत; अनिवृताव्याकृत' के अनन्तर ६ ।' १. रूपधातु के कुशल-कुशलचित्त के समनन्तर रूपावचर अनिवृतान्याकृत' को वर्जित कर ११ चित्त उत्पन्न हो सकते हैं। २. कामधातु के दो क्लिष्ट चित्तों को (अकुशल और निवृताव्याकृत) और आरूप्यधातु के अनिवृताव्याकृत को वर्जित कर ९ चित्तों के अनन्तर कुशल की उत्पत्ति हो सकती है। ३. कामावचर क्लिष्ट द्वय और शैक्ष-अशैक्ष को वर्जित कर ८ चित्तों के अनन्तर निवृता- व्याकृत की उत्पत्ति हो सकती है। ४. निवृताव्याकृत के अनन्तर ६ चित्त अर्थात् रूपावचर तीन चित्त और कामावचर कुशल, अकुशल और निवृताव्याकृत उत्पन्न हो सकते हैं । ५. तीन रूपावचर चित्तों के अनन्तर अनिवृताव्याकृत की उत्पत्ति हो सकती है । ६. अनिवृताव्याकृत के अनन्तर ६ चित्त अर्थात् (१-३) तीन रूपावर चित्त, (४-५) दो कामावचर क्लिष्ट-चित्त (अकुशल और निवृताव्याकृत), (६) आरूप्यावचर क्लिष्ट-चित्त (निवृताव्याकृत) उत्पन्न हो सकते हैं। ६९ सी-७० बी. आरूप्यधातु में भी अनिवृताव्याकृत के लिये वही पूर्वोक्त नीति है। कुशल के अनन्तर ९ चित्त; ६ के अनन्तर कुशल; निवृताव्याकृत के अनन्तर सात; सात के अनन्तर निवृताव्याकृत ।' १. आरूप्यावचर अनिवृताव्याकृत इस धातु के तीन चित्तों के अनन्तर उत्पन्न हो सकता २. आरूप्यावचर अनिवृताव्याकृत के अनन्तर यह ६ चित्त उत्पन्न हो सकते हैं : (१-३) इस धातु के तीन चित्त, (४-६) कामावचर (दो) क्लिष्ट-चित्त और (एक) रूपावचर चित्त । [३१९] ३. कुशल के अनन्तर कामावचर कुशल और कामरूपावचर अनिवृतान्याकृत को वर्जित कर ९ चित्त उत्पन्न हो सकते हैं। ४.६ चित्तों के अनन्तर अर्थात् (१-३) तीन आरूप्यावचर चित्त, (४) रूपा- वचर कुशल, (५-६) दो अनास्रव चित्त के अनन्तर कुशल की उत्पत्ति हो सकती है । ५. निवृताव्याकृत के अनन्तर सात चित्त अर्थात् (१-३) तीन आरूप्यावचर चित, (४) रूपावचर कुशल, (५-६) कामावचर क्लिष्ट-द्वय, (७) रूपावचर क्लिष्ट उत्पन्न हो सकते हैं । ६. कामावर क्लिष्ट-इय, रूपावचर क्लिष्ट और शैक्ष-अशैक्ष को वर्जित कर सात चित्तौं के अनन्तर निवृताव्याकृत उत्पन्न हो सकता 1 8 १ [एकादश शुभाद् रूपे तद् नवसमनन्तरम् । अष्टभ्यो निवृतं तस्मात्, पकं अनिवृतं वयात् । ततः पदकम्] [इयं नोतिरारूप्येऽपि शुभानय ॥ चित्तानि तद् भघेत् षट्कान निवृतात् सप्त तत् तथा । २