पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/२८३

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तृतीय कौशस्थान : लोकनिर्देश २७३ शेष विज्ञानस्थिति क्यों नहीं है ? ६ वी . शेष में विज्ञान का परिभेद है ।' शेष से दुर्गति (नरकादि अपाय); चतुर्थ ध्यान और चतुर्थ आल्प्य (नैवसंज्ञानासंज्ञायतन) जिसे भवान, भव का अग्र कहते हैं, अभिप्रेत हैं। वहाँ विज्ञान का परिभेद होता है, विज्ञान व्युच्छिन्न होता है । अपायों में दुःखवेदना विज्ञान का अपघात करती है ; चतुर्थ ध्यान में योगी असंज्ञिसमापत्ति (२.४२) की भावना कर सकता है और इस ध्यान में आसंज्ञिक होता है अर्थात् वह धर्म (२.४१ वी) जो देवों को असंज्ञि-सत्त्व बनाता है; भवाग्न में योगी निरोधसमापत्ति की (२.४३ ए) भावना कर सकता है। एक दूसरे व्याख्यान के अनुसार (विभाषा, १३७, ९ ) "वह स्थान जहाँ इहस्थों की जाने की इच्छा होती है। वह स्थान जहाँ से तत्रस्थों की व्युच्चलित होने की इच्छा नहीं होती" [२२] विज्ञानस्थिति कहलाता है । अपाय में उभय का अभाव है। चतुर्थ ध्यान में जो समापन्न होते हैं, वह वहाँ से व्युत्थान करना चाहते हैं। पृथग्जन असंज्ञि-सत्वों में प्रवेश करना चाहते हैं (आसंज्ञिक प्रविविक्षा); आर्य शुद्धावासिकों में [या आरूप्यायतनों में; शुद्धावासिक शान्तनिरोध का संमुखीभाव चाहते हैं ] प्रवेश चाहते हैं। भवाग्न विज्ञानस्थिति नहीं है क्योंकि यहाँ विज्ञान का प्रचार अपटु है। सात विज्ञानस्थिति, ६ सी-डी भवान और असंज्ञि-सत्त्व, यह ९ सत्त्वावास है। क्योंकि सत्त्वों का वहाँ वस्तु- कामता के साथ आवास होता है। .1 १ २ ३ अरूपिणः सन्ति सत्वा ये सर्वश आकाशानन्त्यायतनं समतिक्रम्यानन्तं विज्ञानमित्य... [या २६२.१२ आनन्त्यं -व्याख्या का पाठ] 1 ८.४ देखिये। शेषं तत् परिभेदवत् । व्याख्या--परिभिद्यतेऽननति परिभेदः च्या २६२. २३] । वसुबन्धु विभाषा, १३७, ८ के आठ आख्यानों में से सातवे को उद्धृत करते हैं। इहस्यानां गन्तुकामता। न तमस्थानां व्युच्चलितुकामता। ध्या २६२. २६] यह अधिक वाक्य शुआन-चार का है जो संघभद्र का अनुसरण करते है (जिसे व्याख्या ३.७ ए को व्याख्या में उद्धृत करती है):--"जो आर्य चतुर्थ ध्यान के पहले तीन लोकों में उमपन्न होते हैं वह शुद्धावासों में (चतुर्य ध्यान के अन्तिम पाँच लोक) या आरूप्य में प्रवेश चाहते हैं और शुद्धावास निर्वाण चाहते हैं।" ईपप्रचारवाल-व्याख्या : चित्तचत्तानां मन्दप्रचारत्वादबलवद् विज्ञानं न तिष्ठति। [व्या २६२.२६] भवाग्रासंझिसत्वाश्च सत्वावासा नव स्मृताः॥ [व्या २६२.२९] । फ़ा-पाओ कहते हैं कि सूत्र को शिक्षा ९ तत्त्वावासों की नहीं है किन्तु विभाषा (१३५, ३) स्पष्ट है : "इस शास्त्र की रचना किसलिये है ? सूत्र के अर्थ का व्याख्यान करने के लिये सूत्र को शिक्षा है कि सात विज्ञानस्थिति, चार विज्ञानस्थिति, ९ सत्त्वावास है किन्तु यह उनका विशेष नहीं बताता और यह नहीं कहता कि वह कैसे एक दूसरे में संगृहीत होते हैं या नहीं संगृहीत होते. नवसत्त्वावाससूत्र : नव सत्त्रावासाः। कतमे नव। रूपिणः सन्ति सत्वा नानात्वकाया नानात्व- १८ x 17 1