पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/२८५

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तृतीय कोशंस्थान : लोकनिर्देश २७५ (२४) चार स्थितियां यह हैं--रूपोपगा विज्ञान स्थितिः, वेदनोपगा विज्ञानस्थितिः, संज्ञोपगा विज्ञानस्थितिः, संस्कारोपगा विज्ञानस्थितिः। ७ सी-डी. यह स्वभूमिक चार सास्रव स्कन्ध हैं। विज्ञान एक भिन्न भूमि के रूपादि स्कन्धों को आलम्बन बना सकता है किन्तु वह तृष्णा से प्रेरित हो उन आलम्बनों का ग्रहण नहीं करता। अतः वे उसकी स्थिति (३. पृ.८, टिप्पणी २) नहीं अवधारित होते। किन्तु स्वयं विज्ञान (चित्त और चैत्त) जो पञ्चम स्कन्ध है, क्यों नहीं विज्ञान की स्थिति अवधारित होता है? वैभाषिक कहते हैं कि स्थिति 'जिस पर, जिसमें, अवस्यान करते हैं। स्वाता से (जो अवस्थान करता है उससे) अन्य है । देवदत्त गृहादि स्थान से अन्य है। राजा सिंहासन से अन्य है। अथवा विज्ञान-स्थिति से अभिप्राय उन धमों से है जिनके प्रवर्तन के लिये (बाहयति, प्रवर्तयति) विज्ञान उन पर अन्याल होता है यया नाविक नौका को खेता है, किन्तु विज्ञान, विज्ञान का अभिरोहण कर, उसका वाहन नहीं करता । अतः विज्ञान विज्ञानस्थिति नहीं है । किन्तु एक अन्य सूत्र का वचन है कि "इस विज्ञानाहार के प्रति (३. ४० ए) नन्दी (सौमनस्य) होती है, राग होता है।" यदि विज्ञान के प्रति नन्दी और राग होता है तो इसीलिये [२५]. विज्ञान वहाँ अभिरोहण करता है और प्रतिष्ठित होता है। दूसरी ओर आपकी शिक्षा है कि सप्त विज्ञानस्थिति (३.५ए) पञ्चस्कन्वस्वभाव (विज्ञान इनमें संगृहीत है) है। आप विज्ञान को विज्ञानस्थिति-चतुष्क में क्यों नहीं जोड़ते? को 'समीपचारिणी' है। यह रूपस्वभाव है। रूप तया समीप होने से इसका 'ल्पोपगा' विशेषण है। व्या० २६३.१८] बी. भगवद्विशेष कहते हैं कि सौनान्तिक दो नय से व्याख्यान करते हैं-१. विज्ञानस्थिति का अर्थ हम विज्ञान का अवस्थान, विज्ञानसन्तति का अनुपच्छेद करते हैं। इस स्थिति से रूप 'उपगत' होता है (उपगम्यते), रूप का तादात्म्य होता है (तदात्मोक्रियते) । अतः स्थिति रूपोपगा है : "विज्ञान की स्थिति जो रूप को उपगत होती है।" २.अयवा स्थिति तृष्णा है क्योंकि तृष्णा से विज्ञान की स्थिति होती है। अतः विज्ञानस्थिति = "तृष्णाभूत विज्ञान की स्थिति " यह तृष्णा रूप को उपगत होती है, रूप में अभिष्वक्त होती हैं। अतः रूपोपगा विज्ञानस्थितिः="तृष्णा जो रूप में अभिष्वक्त होती है और विज्ञान का अवस्थान करती है।" इन दोनों व्याख्यानों में विज्ञानस्थिति रूप से व्यतिरिक्त है किन्तु यह रूप है जो विज्ञानस्थिति है। अतः व्याख्यान (ए) को स्वीकार करना चाहिये। किन्तु यह कारिकार्य युक्त नहीं है। और अन्य रूपोपगा विज्ञानस्थितिः' का यह अर्थ करते हैं : "ल्पस्वभावा विज्ञानस्थितिः" । वास्तव में 'गम्' धातु का अर्थ स्वभाव है यथा खक्खटखरगत, इत्यादि में किन्तु हम कहते हैं कि 'गत' 'उपर्ग नहीं है।] चत्वारः सानवाः स्कन्धाः स्वभूमावेव व्या० २६३ . ३१] विभाषा, १३७.३ इसको समीक्षा करती है कि यह स्कन्व सत्त्वाख्य हैं या असत्त्वाख्य। दो मत है। संयुक्त, १५,७; संयुत्त, २.१०१ (नेत्तिप्पकरण, ५७) : विमाणे चे भिक्सवं आहारे 'अस्यि नन्दी अस्वि रागो अत्यि तण्हा पतितिं तस्य विनाणं विरुदं-मैंने शुमान् चाड १