पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/२९५

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२८५ तृतीय कोशस्यान : लोकनिर्देश १२ सी . अन्तराभव का नाम से निर्देश है। सूत्रवचन है कि “सात भव हैं : नरक, तिर्यग्योनि, प्रेत, देव, मनुष्य, कर्म और अन्तराभव । यदि निकायान्तर के आम्नाय में यह सूत्र पठित नहीं है तो कम से कम गन्धर्व-सम्बन्धी वचन तो पठित होंगे। १२ सी. यह गन्धर्व है। हम सूत्र में पढ़ते हैं कि “तीन हेतु हों तो गर्भावक्रान्ति होती है [तो पुत्र या दुहिता का जन्म होता है] : माता नीरोर और ऋतुमती हो, माता-पिता मैथुन-धर्म करें और गन्धर्व- [३७] प्रत्युपस्थित हो।" अन्तराभव के व्यतिरिक्त गन्धर्व क्या होगा ?' २ 1 १२ सी.डी. कण्ठोक्तश्चास्ति गन्धर्वः पञ्चोक्तर्गतिसूत्रतः॥ [व्या २७०.९] ऊपर पृ.१३, टिप्पणी २ देखिये। । मज्झिम, २.१५६ : जानन्ति पन भोत्तो यथा गम्भस्य अवक्कन्ति होति। जानाम मयं भो यथा गम्भस्स अवक्कन्ति होति । इप मातापितरोच सन्निपतिता होन्ति माता च उतुनी होति गन्यत्रो च पच्चुपठितो होति । एवं तिण्णं सन्निपाता गभस्स अक्क्कन्ति होति । यही वाफ्य मझिम, १.२६५ में हैं। इन वाक्यों के सम्बन्ध में रोज डेविड्स-स्टोड कहते हैं कि गन्धर्व के विषय में कहा जाता है कि वह "प्रतिसन्धि का अधिष्ठाता है"]--[प्रतिसन्धि के अन्य प्रकार, असुचिपानेन आदि, समन्तपासादिका, १.२१४, मिलिन्द, १२३, जिनमें मज्झिम का वाक्य भी दुहराया गया है। [हम इसकी तुलना नामरूप की अवक्रान्ति से कर सकते है जो विज्ञान के प्रतिष्ठित होने पर होती है, संयुत्त, २.६६; अन्यत्र विज्ञान की अवक्रान्ति, संयुक्त, २. ९१] भिन्न संस्करण, विव्य, १,४४० : त्रयाणां स्थानानां सम्मुखीभावात् पुत्रा जायन्ते दुहितरश्च । कतमेषां नया आत्तापितरौ रक्तौ भवतः सनिपतितौ। माता कल्या भवति ऋतुमती। गन्धर्वः प्रत्युपस्थितो भवति । एषां त्रयाणां........ विडिश, गेबुर्ट, पृ. २७ का यह पाठ 'गन्धर्वप्रत्युपस्थिता' अवश्य सदोष है : चार हस्तलिखित पोथियों का पाठ 'प्रत्यू. पस्थितो' है। हमारे सूत्र का पाठ गर्भावक्रान्ति' है ('युवा जायन्ते .... •नहीं है) हमारे सूत्र में पहले माता को अवस्था का वर्णन है, पश्चात् माता-पिता का मथुन-कर्म है, शेष दिव्य के अनुसार है। विभाषा, ७०, ९ में इसका विवेचन है; 'कल्या' का अर्थ 'नीरोग' है। ऋतुमती का विवरण । गन्धर्व पर पृ. ३२, टिप्पणी १ में दिये ग्रन्थों को देखिये-स्वार दल इंद (कवग्नक, इस्त्वार द मांद, तृतीय भाग) १.२८७ को टिप्पणियाँ भी देखिये।--- ओल्डेनवर्ग ने रिलिजन आद् दि वैद', २०९ में दिखाया है कि बौद्धों का गन्धर्व जीव है जो पूर्वजन्म से जन्मान्तर में संसरण कर गर्भ होने के लिये उत्पाद-क्रिया के क्षण की प्रतीक्षा करता है और उस क्षण का ग्रहण करता है।" [इसके विरुद्ध हिलेब्रांडके अनुसार गन्धर्व ऋतु का अधिष्ठातृ-देवता है। यही मत रोज डेविड्स-स्टोड का है गन्धर्व प्रतिसन्धि का अधिष्ठाता कहा जाता है। इसके विरुद्ध पिशेल के अनुसार गन्धर्व गर्भ है] गन्धर्व अशरीरी जीव का वैदिक' नाम है। जीव का जो भाष 'पूर्वो' का या उसको वह इस शब्द से व्यक्त करते थे।